श्री संतराम बी.ए. |
70
के
दशक में मेरा होशियारपुर आना
जाना लगा रहता था मेरे पिता
श्री मुंशी राम भगत वहां मानवता
मंदिर में 14
साल
रहे थे.
वहां
वे साधु आश्रम के भी संपर्क
में आए.
उन्होंने
साधु आश्रम,
होशियारपुर
से जुड़े एक सज्जन संतराम
बी.ए.
का
उल्लेख किया था और साधु आश्रम
में ही उन्हें एक पुस्तक मिली
थी जिसमें मेघों के इतिहास
की कुछ जानकारी थी जिसका उल्लेख
उन्होंने अपनी पुस्तक ‘मेघ-माला’
में किया है.
इसमें
लिखा था कि मेघों का एक पूर्वज
वाराणसी से आया था और जम्मू
में आकर बसा था.
उसमें
छपी कहानी पर उन्होंने काफी
प्रश्न चिन्ह लगाए थे.
इसके
अतिरिक्त मेरे सबसे बड़े जीजा
जी श्री सत्यव्रत शास्त्री
(चंडीगढ़),
जो
संस्कृत में एम.ए.
थे,
ने
भी दो-एक
बार संतराम बी.ए.
का
उल्लेख करते हुए उनकी प्रशंसा
की थी और बताया था कि वे संस्कृत
के बहुत बड़े विद्वान थे.
संस्कृत
में मेरी कोई रुचि नहीं थी सो
अधिक सवाल नहीं किए.
पिता
जी से सवाल पूछने की आदत बहुत
कम थी.
डॉ.
अंबेडकर
की लिखी ‘Annihilation
of Caste' (जाति
उन्मूलन)’
पढ़ी
थी.
उस
वर्शन में कहीं संतराम बीए
का उल्लेख आया हो सो याद नहीं.
‘जात-पात
तोड़क मंडल’ द्वारा लाहौर
में आयोजित एक कार्यक्रम के
बारे में भी पढ़ा था.
वहाँ
संतराम बीए का नाम था.
बस
इतना ही याद है.
आंखों
में तकलीफ के कारण इन दिनों
जी-मेल
बहुत कम देखा था आज सुबह उसे
खोला तो ताराराम जी के भेजे
हुए दो मेल प्राप्त हुए थे.
एक
मेल के साथ एक पुस्तक से फोटो
भी प्राप्त हुआ जिसे पढ़ कर
हैरानगी से अधिक खुशी हुई.
यह
संदर्भ Dalit
Movement in India and its leaders (1857-1956) पृष्ठ
323
पर
मिला है.
इस
पुस्तक के लेखक श्री आर.के.
क्षीरसागर
हैं.
उसका
स्क्रीन शॉट नीचे दिया है :-
“6.
Shri Sant Ram B.A. ( His birthday falls on 14th Feb,2016 )
Shri
Sant Ram B.A. a Dalit (Megh) by caste was born on 14th Feburary 1887
at Puranni Bassi Hoshiarpur (Punjab). He had studied up to B.A. and
thereafter devoted himself for Dalit upliftment social work. He was
also a devoted Arya Samaji sect of Soami Dayanand Saraswati. To
abolish caste system he worked to establish his own organization
“Jat-Pat- Todak Mandal”. One of the plank of his organization was
to promote inter-caste marriages and to get abolished caste system
from within the Depressed classes. Since Arya Samajis did not
cooperate with Jat-Pat Todakl Mandal ideals, so Sh.Sant Ram made it
an independent organization to continue his efforts for achieving
his set goals.
Shri
Sant Ram invited Dr.Ambedkar to preside over 1936 annual convention
of the Jat-Pat Todak Mandal to be held at Lahore and also deliver his
presidential address. Dr.Ambedkar wrote the Presidential address, but
the Mandal committee wanted some changes in it, to which Dr.
Ambedkar did not agree. The convention was cancelled and the
presidential address was published by Baba sahib as “Annihilation
of Caste” in 1936 itself and this book is considered as one of the
best books written by the author. It has gone into so many reprints
since then. Sant Ram himself translated into Hindi and published in
the Kranti an Urdu monthly magazine. Sant Ram authored many books as
well. He breathed his last on 5th June 1988.”
एक
और लिंक
मिला
जिसमें संतराम बीए को ‘लाला’
कहा गया है.
एक
पुस्तक का भी उल्लेख मिला
उसमें संभवतः संतराम जी का
भाषण छपा था.
उसका
स्क्रीनशॉट नीचे दे रहा हूँ
:-
‘लाला’
शब्द भ्रामक हो सकता है.
संभव
है उन्हें आर्यसमाज से जुड़े
होने के कारण किसी ने भूलवश
‘लाला’ कहा हो.
मेरा
ध्यान उनके ‘मेघ’ जाति के होने
पर टिका है….और
इसके साथ ही कुछ सवालों पर
मेरा मन अटक गया है.
दूसरी
बात सामने आई कि प्रजापति समाज
संतराम बीए को अपना मान कर
उनका जन्मदिन
मना चुका है.
ताराराम
जी ने बताया है कि संतराम जी
के पिता कुम्हार का कार्य करते
थे लेकिन वे मेघ थे जैसा कि
ऊपर के स्क्रीन शॉट से स्पष्ट
है.
किन्हीं
परिवारों के व्यवसाय बदल जाने
से उनकी जाति बदल जाती है इसका
संकेत स्वयं संतराम जी ने अपनी
आत्मकथा में दिया है जिसके
एक पृष्ठ की फोटो नीचे दी गई
है.
उनका
जीवन काल 16
फरवरी
1887
से
5
जून
1988
तक
(सौ
वर्ष से कुछ अधिक)
रहा.
वे
1945
में
कांग्रेस में शामिल हुए और
1946
से
1962
तक
पंजाब विधान परिषद के सदस्य
रहे.
सन
1936
में
जात-पात
तोड़क मंडल के वार्षिक अधिवेशन
में उन्होंने डॉक्टर भीमराव
अंबेडकर को अध्यक्षीय भाषण
पढ़ने के लिए आमंत्रित किया
था.
जाहिर
है कि वे डॉक्टर अंबेडकर के
संपर्क में थे.
उधर
एडवोकेट
हंसराज भगत भी डॉ अंबेडकर
के संपर्क में थे और पंजाब की
अछूत जातियों की अनुसूची बनाने
का कार्य कर चुके थे.
इससे
यह प्रश्न पैदा होता है कि
क्या श्री संतराम और एडवोकेट
हंसराज भगत का कोई आपसी संपर्क
था?
यह
भी उल्लेखनीय है कि वे दोनों
पंजाब विधान परिषद के सदस्य
रहे.
हंसराज
भगत कुछ पहले और संतराम जी कुछ
बाद में.
क्या
संतराम बीए की कोई कैमरे से
खिंची बढ़िया-सी
फोटो साधु आश्रम,
होशियारपुर
में उपलब्ध है?
आखिर
में दिल की एक बात कहता हूँ.
मेघों
के बारे में बहुत-सी
नकारात्मक बातें कही जाती
हैं,
जैसे
कि इनमें एकता नहीं होती,
ये
किसी की नहीं सुनते,
ये
केंकड़ों की तरह एक-दूसरे
की टाँग खींचते हैं वगैरह.
मैं
इसे महत्व नहीं देता.
मुझे
इस बात की तकलीफ होती है कि
पढ़ने-लिखने
के बाद भी मेघों ने अपने बारे
में नहीं लिखा.
संतराम
बीए ने खूब लिखा और आज हमारे
पास उस समय के हालात का विवरण
उपलब्ध है.
उनका
लेखन हिंदी साहित्य के इतिहास
में अपना स्थान रखता है.
उनकी
आत्मकथा को भारत सरकार ने
आर्काइव
किया हुआ है.
यदि
एडवोकेट हंसराज जी ने भी लिखा
होता तो उनके अनुभव हमारा
मार्गदर्शन करते.
जो
खालीपन रह गया है उसे भरने का
काम मेघों को ही करना होगा.
इसलिए
आप धाराप्रवाह बोलिए और लगातार
लिखिए.
“जीओ ताराराम जी”.
03-07-2016
ब्लॉग
26-04-2016
को
प्रकाशित किया गया था.
इस
दौरान प्रो.
राजकुमार
भगत व्यक्तिगत रूप से पुरानी
बस्सी,
होशियारपुर
गए और श्री संतराम बी.ए.
के
घर पहुँचे जहाँ वे रहा करते
थे.
वे
उनके एक भतीजे से और उस गाँव
के कुछ अन्य लोगों से भी मिले.
मैं
प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि वे
अपना अनुभव लिखें ताकि उसे
यहाँ शेयर किया जा सके.
फिलहाल
उनकी भेजी हुई फोटो यहाँ दे
रहा हूँ.
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