Mar 18, 2019

तुलसीराम, ऑनरेरी सूबेदार मेजर

किसी दिन सूरज बहुत खुशी लेकर आता है. कल का दिन ऐसा ही था.

संपादक ‘मेघ-चेतना’ के नाम पर एक पत्र अख़्नूर (जम्मू-कश्मीर) से प्राप्त हुआ जिसमें एक ऑनरेरी सूबेदार मेजर तुलसीराम को सेना का ‘वीरचक्र’ मिले होने की सूचना मिली.

हालांकि मैंने हाल ही में ‘मेघ-चेतना’ के संपादकीय कार्य से छुट्टी ले ली है तथापि पिछले अंकों में छपे मेरे पते पर एक लिफ़ाफ़ा डाक से मिला जिसे मैंने खोल लिया (इसके लिए ‘ऑल इंडिया सभा, चंडीगढ़’ से क्षमा). लिफ़ाफ़े में एक पत्र मिला जिसके साथ कई क़ाग़ज़ नत्थी थे. 17-03-2019 को मिले अग्रेषण-पत्र (forwarding letter) पर अख़्नूर के एक सज्जन डॉ. के.सी. भगत के हस्ताक्षर थे और उसके साथ संलग्न पत्र पर डॉ. के.सी. भगत, प्रेज़िडेंट, जागृति समाज (रजि.) और ऑनरेरी कैप्टेन बी.आर भगत, जनरल सेक्रेटरी, एक्स-सर्विसमैन एसोसिएशन, अख़्नूर के हस्ताक्षर थे. पत्र 10 मार्च, 2019 को लिखा गया था. तीसरे पृष्ठ पर एक रौबदार सैनिक की फोटो छपी थी जिसके नीचे जानकारी दी गई थी वे ‘वीरचक्र’ प्राप्त तुलसीराम जी हैं. 1962 के भारत-चीन युद्ध में वे लद्दाख में रेमू नामक एक छोटी चौकी के कमांडर थे और उनके साथ चार अन्य सैनिक थे. जब चीनी फौज ने हमला किया तब इन कुल पाँच सैनिकों ने उनके हमले का सामना किया. लड़ाई में लगभग 200 चीनी सैनिक हताहत हुए. तुलसीराम के पास लाइट मशीन गन (LMG) थी जिसे तुलसीराम खुद चला रहे थे. चौकी गिरने के बाद वे अपनी एलएमजी साथ लेकर लौटे थे.

भारत-चीन युद्ध के दौरान युद्ध-भूमि में शौर्य और वीरता का प्रदर्शन करने वाले इस धरतीपुत्र को तब भारत के राष्ट्रपति ने ‘वीरचक्र’ प्रदान किया था. गाँव सरमला, तहसील खौर, ज़िला जम्मू के इस धरती-पुत्र का नाम दिल्ली के उस राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर भी उत्कीर्ण है जिसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 फरवरी, 2019 को किया है. हम ऑनरेरी सूबेदार मेजर तुलसीराम जी को सलाम करते हैं. शत्रु के समक्ष प्रदर्शित उनका साहस ऊंचे दर्जे का था. 

श्री तुलसी राम जी का जीवन कब से कब तक आ रहा यह जानकारी मिलनी बहुत जरूरी है. उन्होंने जम्मू कश्मीर के एक सुदूर चुनाव क्षेत्र की अखनूर तहसील के एक सीमांतक (मीर्जिनल) परिवार में जन्म लिया था और और अपने शौर्य के कारण उन्होंने इस जम्मू कश्मीर के इस पिछड़े क्षेत्र का मान बढ़ाया. उनके इस शौर्य ने इस क्षेत्र के कई युवाओं को सेना में जाने के लिए प्रेरित किया और राष्ट्रीय सेवाओं में जाकर कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद समाज सेवा में अपना जीवन बिताया.

अक्सर देखा गया है कि सेवानिवृत्त सैनिक समाज-सेवा में भी प्रवृत्त हो जाते हैं. अपने अनुभव के साथ वहां वे अपनी सेवा की गहरी निशानियां छोड़ते चलते हैं. उनके उस जीवन के बारे में जितनी अधिक जानकारी मिल सके उतनी एकत्रित की जानी चाहिए जिसके लिए मैंने ऑनरेरी कैप्टन बी.आर. भगत जी से विशेष अनुरोध किया है. ‘वीरचक्र’ देते समय जो साइटेशन पढ़ी जाती है उसमें तुलसीराम जी के नाम के साथ ‘मेघ’ या ‘भगत’ सरनेम नहीं था. इसकी जानकारी प्राप्त करने में श्री एन.सी. भगत और श्री अनिल भारती (कुमार ए. भारती) जी ने मदद की और श्री बी.आर भगत जी ने स्पष्ट किया कि श्री तुलसीराम जी मेघ भगत हैं.

जब मैं कॉलेज में पढ़ता था तब पंजाब से एक फौजी अफसर हमारे घर आए थे जिन्होंने बताया था कि उन्होंने सन 1971 के भारत-पाक युद्ध में शत्रु के क्षेत्र में प्रवेश किया था (घर में घुस कर मारा था). काफी आगे जाने के बाद एक बारूदी सुरंग फटने से वे बुरी तरह घायल हुए थे.

मेघों में बहुत से युवा लोग सेना में गए हैं और उन्होंने बेहतरीन सेवाएं दी हैं. यदि उनके बारे में जानकारियाँ इकट्ठी हो सकें तो बहुत अच्छा होगा. बेहतर होगा  कि वे अपने बारे में लिखें, अपने अनुभव के बारे में बताएं ताकि उनकी वीर गाथाों से अन्य युवा और आने वाली पीढ़ी प्रेरणा ले सके.

प्रसंगवश - मेरी जानकारी में आया है कि हमारे समुदाय के एक वीर आत्माराम जी को वीर चक्र मिला है. उनके बारे में विस्तृत जानकारी प्रतीक्षित है.






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