May 22, 2015

Bhagat Chhajju Ram - भगत छज्जू राम

Today is the Death Anniversary of Late Bhagat Chhajju Ram Ji, who left this mortal World on this day 22.05.1989. Born on 07.03. 1907, he lived and served the humanity particularly in J&K state as Hon'ble member Praja Sabha before 1947; MLA R.S. Pura; MLA Bishanah; Hon'ble Cabinet Minister; MLC; President, Pradesh Congress Committee Jammu & Kashmir.
Popularly known as "रियासती गाँधी", he followed the Gandhian Philosophy throughout his life, lived a simple life and always believed in simple living and high thinking.
He was eldest of the three siblings: one brother and one sister. He lost his father when he was a young boy and had to quit his studies in 8th class to take care of the younger siblings at the tender age of 14 years. He learnt the vocation of tailoring to feed them and his mother. He was studying in Lahore when his father died. Later on, he started a cloth shop in R S Pura in which Lala Karam Chand Arora whom he invited to join as a partner. It was necessitated with his growing involvement with social awakening programmes. 
He started his social journey from Arya Samaj.He had joined the Arya Samaj in Lahore and was working in Jammu in close liasion with Lal Hans Raj Mahajan ( of famous Mahajan Sports of Jalandhar , then at Lahore). Arya Samaj Movement especially against UNTOUCHABILITY and CASTEISM owes much to Bhagat Sahib. He lead the Arya Samaj in cohesing the society to rid it of the social evils existing in the sociaety particularly Hindus. He was instrumental in establishing Ary Samaj at R S Pura and Arya Samaj Mandir at Shastri Nagar (Gandhi Nagar). 
On Socio-Political Front, he started his journey by forming MEGH MANDAL which primarily worked among the the huge majority of Megh community in Jammu and surrounding areas for their social and political amelioration and emancipation. He used to hold social gathering delivering lectures and exhorting people for education, Popularly known as"Yag" community kitchen was usually organised on such assemblies.
A voracious and interestingly wonderful speaker, he was. His speeches were a mount of wits to which people listened passionately with pin drop silence and heart full laughter. 
He was a staunch follower of Kabir Sahib and established Kabir Kalyan Kendra at Jhiri Kahnachak as an excellent centre for social development. He had founded a social magazine "KABIR SANDESH" to spread the teachings of Kabir Sahib. He was the ideologue and patron of the Sant Kabir movement in J&K and patronised the organisation of ever first Kabir Sabha Bishnah in 1980.
He was the the campaign manager of election of Mufti Mohmmad Sayyad as MLA from R S Pura, who won ever from Jammu in1986.
He was a Friend, Philosopher and Guide.
He had established a trust " Bhagat Chhajju Ram Trust " for social service especially for the sick, destitute and infirm to whom mrdicines were distributed every month.
He did not own a house, have a fast conveyance like car all his life and lived in rented accommodation. Sheikh Mohd. Abdullah the then H'ble Chief Minister knowing that Bhagat chhajju Ram did not a house allot a govt. accommodation to him till he survives. 
We remember him from the core of heart and pay our homage.

Contributed b:
Sh. Ashok Bhagat
14-C, Shastri Nagar
Jammu-180003

May 14, 2015

Dr. M.L. Parihar - डॉ.एम.एल.परिहार

आज (14-08-2014) डॉ. एम. एल. परिहार साहब का जन्म दिवस है। परिहार साहब मूलतः देसूरी के पास करणवा गांव के निवासी हैं। वे श्रद्धेय श्री आशाराम परिहार के पुत्र हैं। वे सादड़ी के समाज कल्याण विभाग के छात्रावास में रहकर श्री देवीचंद मायाचंद बोरलाईवाला उच्च माध्यमिक विद्यालय में हायर सैकेंडरी कक्षा तक पढ़े। इसी विद्यालय में मैं भी पढ़ा।
डॉ. परिहार के पिताजी और दादाजी जुलाहागीरी, चर्मकारी एवं खेती-बाड़ी से जीवन-यापन के साथ-साथ भजन, संत्संग में भी रुचि रखते थे। इसलिए जम्मा, जागरणों में अक्सर उनको बुलावा आ जाता था। यहीं से आज के डॉ. परिहार की नींव पड़ी। वे अपनी पुस्तक ‘मेघवाल समाज का गौरवशाली इतिहास’ में लिखते हैं कि -- ‘इसी माहौल में धीरे-धीरे मेरे होठों पर भी कबीर के भजन गुनगुनाने लगे’....। कबीर की वाणियाँ श्रवण करते-करते उनके मन में समाज सुधार, आडम्बर, अंधविश्वासों के विरूद्ध चेतना पैदा होने लगी। इस चेतना की परिणति तब देखने को मिली जब वे बीकानेर में बीवीएचसी कर रहे थे। वहीं से वे मेघवाल समाज में सदियों से फैले आडम्बर, अंधविश्वासों के विरूद्ध पेम्फलेट जारी करने लगे।
लोग इन आडम्बरो, अंधविश्वासों में इतने आकंठ डूबे हुए थे कि उससे निकलना उनके लिए मुश्किल था। लेकिन फिर भी वे लोग इन पेम्फलेट्स को संभालकर रखने लगे। यहीं से घनघोर अंधेरे में समाज सुधार की एक महीन रोशनी की किरण दिखाई देने लगी।
आगे जाकर उन्हें लगा कि किसी एक जाति समाज के सुधारने से ही दबे-कुचले पिछड़े समाज का उद्धार नहीं होना है। उन्होंने डॉ. भीमराव अम्बेडकर को पढ़ा। गहन अध्ययन से उनकी सोच का दायरा व्यापक हुआ। अब कबीर साहब से उनके मन में फूटी जागृति की लौ बाबा साहब अम्बेड़कर के अध्ययन से और तेजी से प्रज्जवलित होने लगी। वे सम्पूर्ण दलित वर्ग के उत्थान की सोचने लगे।
उन्हीं दिनों में जयपुर से नवभारत टाइम्स का प्रकाशन शुरू हुआ। उसमें ‘पाठकों के पत्र’ कॉलम में वे लिखने लगे। आपको बता दें कि उस नवभारत टाइम्स ने निष्पक्षता एवं निर्भीकता से पाठकों के पत्र प्रकाशित किए थे। इस कॉलम ने डॉ. परिहार के अलावा रमैयाराम कबीरपंथी, डॉ.प्रेमचंद गांधी, रत्नकुमार सांभरिया, डॉ. कुसुम मेघवाल, राजनलाल जावा सहित अनेक लेखक पैदा किए। जो आज प्रदेश के जाने-माने लेखक एवं साहित्यकार हैं और पत्र-पत्रिकाओं में नियमित छपते हैं। डॉ. परिहार ने बेबाकी से इस कॉलम में अपने विचार व्यक्त किए। उनके लेखन को डॉ. विश्वनाथ के दिल्ली प्रकाशन के साहित्य व सरिता-मुक्ता पत्रिकाओं व उनके रिप्रिंट के अध्ययन ने और धार दी।
जब वे अपना प्रशिक्षण पूरा कर पशु चिकित्सक बन गए। उनकी पहली पोस्टिंग पाली जिले के आनन्दपुर कालू में थी। बाद में वे सादड़ी आ गए। यहाँ से उन्होंने अम्बेडकर मिशन को गति देनी शुरू की। अक्सर मैं और सहपाठी नारायण रीण्डर हाईस्कूल से छूट्टी होने के बाद बस्ते लेकर उनके पास चले जाते थे। यहाँ हमसे उम्र में बड़े श्री रतनलाल सोलंकी, श्री रमेश भाटी, श्री ताराचंद माधव, श्री रमेश रीण्ड़र इत्यादि उनका सान्निध्य पाते और बाबा साहब को समझने का अवसर पाते थे। उनके पास अक्सर राजस्थान बैंक के अधिकारी श्री लखमाराम परमार, कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक पुखराज मेंशन, सहायक कृषि अधिकारी कुन्नालाल सहित अधिकारी-कर्मचारी आते रहते थे। यह मिलन इस क्षेत्र में अम्बेडकर मिशन का प्रादुर्भाव कर गया। उन्होंने पहली बैठक सादड़ी के मेघवालों के बड़ा बास में श्री वालाराम सोलंकी पुत्र कूपारामजी सोलंकी के घर की और एकत्र लोगों को अंधविश्वास, रूढ़ीवादी सोच से उबरने को प्रेरित किया।
डॉ. परिहार प्रगतिशील विचारधारा के हैं। जयपुर में श्री बीरबल चित्राल की पुत्री डॉ. मंजुला जी से उनका विवाह हुआ। जब करणवा में घोड़ी पर सवार होकर उनकी बंदौली निकली तो कुछ लोगों को बुरा लगा और रास्ते में कचरा डाल दिया। इस घटना ने उनके मन को और उद्वेलित किया। इसके बाद में वे जयपुर पदस्थापित हो गए। उन्होंने अम्बेडकर मिशन को घर-घर पहुँचाने की ठानी। उन्होंने बाबा साहब की हजारों लेमिनेटेड तस्वीरें तैयार करवाईं। घर-घर दस्तक देकर उन्होंने महज बीस रूपए में एक तस्वीर उपलब्ध कराई। उन्होंने लोगों को अम्बेडकर के योगदान के बारे में बताया और उनका चित्र अपने घर में टांगने के लिए प्रेरित किया। टौंक फाटक में जब वे घर-घर जा रहे थे तो उनके इस अभियान को देखने के लिए एक दिन मैं भी उनके साथ रहा। ये वे दिन थे जब दलित वर्ग कदम बढ़ा रहा था लेकिन अन्य वर्गों की नफरत से बचने के लिए घर में अम्बेडकर के चित्र टांगने को हेय समझ रहा था। मैं एक घर में उनके साथ गया तो नवनिर्मित मकान के मालिक ने कहा हम तस्वीरें नहीं टांगेंगे। ऐसा करने से घर की दीवारें खराब हो जाएँगी। उनके इस मिशन की चर्चा तब नवभारत टाइम्स में भी हुई थी। इन्हीं दिनों में उन्होंने अपने लेखन का दायरा बढ़ाया और नवभारत टाइम्स में विविध विषयों पर लिखने लगे। इस दरम्यान उन्होंने पशुपालन अध्ययन के लिए विदेश यात्रा भी की।
इसी दौर में राजस्थान लोकसेवा आयोग ने जिला पशुपालन अधिकारी की रिक्तियाँ निकाली और वे साक्षात्कार के बाद इस पद पर चयनित कर लिए गए। इसी के साथ उनका पदस्थापन पाली हो गया। यहाँ आकर उन्होंने आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी के मद्देनजर उनकी आबादी को नियंत्रित करने के लिए कुत्तों में बंध्याकरण अभियान चलाया जो प्रदेशभर में चर्चा का विषय रहा। लेकिन कुछ वर्ष बाद वे फिर से जयपुर लौट गए। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय के जनसंचार केन्द्र से पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातक उपाधि भी हासिल की। -प्रमोदपाल सिंह मेघवाल 


(प्रमोदपाल सिंह मेघवाल सौजन्य से)



Achlaram Meghwal - श्री अचलाराम मेघवाल


आज मेरे पिताजी पूर्व राज्यमंत्री अचलारामजी मेघवाल का जन्म दिवस है। वे अपनी उम्र के 66 बसंत देख चुके और गणना करे तो आज उन्हें अपने जीवन 24 हजार 106 दिन पूरे हुए हैं। इस दरम्यान पता नहीं उन्होंने कितने संघर्ष देखे और झंझावतों से पार पाया है। सत्ता सुख के बावजूद दिखावा उनसे कोसों दूर रहा। उनकी सादगी और ईमानदारी के आज भी हजारों लोग कायल हैं।

उन्होंने सात विधानसभा चुनाव लड़े और तीन बार विधायक चुने गए। एक बार आयुर्वेद राज्यमंत्री भी रहे। भाजपा जिलाध्यक्ष, भाजयुमो प्रदेश उपाध्यक्ष व भाजपा के प्रदेश मंत्री जैसे संगठन के कई पदों पर भी रहे। वे पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत के करीबी लोगों में से एक थे।

लेकिन बाद के दिनों में उन्हें भाजपा ने किनारे कर दिया। अब सुखद बात यह है कि राजनीति की मुख्यधारा में धीरे-धीरे उनकी भागीदारी बढ़ती जा रही है। कहा जा सकता है कि उनके लिए 67 वां वर्ष शुभ होगा। पिछले दिनों पाली जिले से भारतीय जनता पार्टी का जिलाध्यक्ष बनाने के लिए नाम पैनल में चला। लेकिन वे इस पार्टी के संस्थापक जिला महामंत्री और बाद में दूसरे जिलाध्यक्ष बनने का गौरव हासिल चुके हैं। इसलिए अब इनकी वरिष्ठता और अनुभवों के आधार पर कोई नई जिम्मेदारी तय की जा सकती है।

इस समय वे भारतीय जनता पार्टी के गौवंश विकास प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। पिछले दिनों वे नई दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाग लेकर लौटे हैं। लेकिन जो लोग इन्टरनेट के जमाने में वर्तमान नेताओं के बारे में ही जानते और समझते हैं उन्हें श्री कैलाश मेघवाल के समकक्ष सन् 1977 में राजनीतिक क्षेत्र में पदार्पण करने वाले अचलाराम जी मेघवाल के बारे में संभवतः ज्यादा जानकारी न हो।

इनके पिताजी वेलारामजी ने अश्लेषा नक्षत्र में इनके जन्म की वजह से नाम रख दिया अचलाराम। बाल्यावस्था में ही माँ गुजर गई, तो सारा भार पिता जी पर आ गया। तीन भाईयों में इस मझले बेटे को पिताजी बहुत स्नेह करते थे। लिहाजा चमड़े के व्यापारी पिताजी के साथ रहने और उनके क्रय-विक्रय हिसाब भी वे ही रखते थे।

नारलाई में जन्मे मेघवाल की पढ़ाई-लिखाई अपने गांव में ही हुई। प्राइमरी कक्षा करते-करते वे अपने पिताजी के साथ रहने लगे। अक्सर मेवाड़ के चारभुजा, जनावद, धानीन और आसपास के गांवों में पैदल चलकर पहुँचना और रात रहना पड़ता था। इस चक्कर में पढ़ाई छूटती गई। आज भी इनके पिता जी इन गांवों में ‘वेलादादा‘ के नाम से पहचाने जाते हैं। लेकिन एक दिन उनके पांव में कांटा चुभ गया तो पिताजी को काफी दर्द हुआ और अपने बेटे को वापस स्कूल में दाखिला दिला दिया। आठवीं कक्षा पास करने के बाद वे सादड़ी चले गए। वहाँ समाज कल्याण विभाग के अनुदानित छात्रावास में रहकर देवीचंद मायाचंद बोरलाईवाला उच्च माध्यमिक विद्यालय से सैकेण्डरी और हायर सैकेण्ड़री पास की। पढ़ाई के बाद उनका चयन अध्यापक प्रशिक्षण के लिए हो गया।

उन्हें प्रशिक्षण केन्द्र शिवगंज आबंटित किया गया। वे शिवगंज तो गए लेकिन भारी बरसात हो गई। तब आवागमन के साधन भी आज के मुताबिक नहीं थे। तब वे कुछ दिन बाद ही घर लौटे और पैसों की कमी की वजह से चने खाकर गुजारा करना पड़ा।





Dr. Kusum Meghwal - डॉ. कुसुम मेघवाल

Dr. Kusum Meghwal
डॉ. कुसुम मेघवाल का जन्म 29 अप्रैल 1948 राजस्थान के उदयपुर नगर में हुआ. उन्होंने 1964 में हायर सैकेंड्री परीक्षा उत्तीर्ण की. इसी वर्ष चित्तौड़गढ के छोटी सादड़ी में विवाह हुआ. दो पुत्रों की माता के रूप में दस वर्षों तक खेती एवं घर गृहस्थी का कार्य करती रहीं.

विवाह के दस वर्ष बाद पुनः पढाई प्रारम्भ की. 1973 में बान्सी गाँव में अध्यापिका के पद पर प्रथम नियुक्ति हुई. 1975 में सुखाड़िया विश्वविधालय में लाइब्रेरी में नियुक्ति हुई. वर्ष 1977 में राजस्थान विश्वविद्यालय से स्वयंपाठी के रूप में विभिन्न कठिनाइयों के साथ बी.. किया तथा 1979 में हिन्दी में एम.. की डिग्री प्राप्त की. वर्ष 1985 में सुखाड़िया विश्वविद्यालय से "हिन्दी उपन्यासों में दलित वर्ग" नामक शोधग्रन्थ पर डॉक्टरेट (पीएच.डी.) की. 1988 में एल.एल.बी. द्वितीय वर्ष तक इन्होंने अध्ययन किया.

वर्ष 1980 में भारत सरकार के उपक्रम- 'हिन्दुस्तान ज़िंक लिमिटेड' के उदयपुर स्थित मुख्य कार्यालय में राजभाषा अधिकारी के पद पर नियुक्ति. लगातार 20 वर्षों तक वहाँ कार्यरत रहीं. हि.जि..जा..जा. कर्मचारी संघ का गठन. अन्य कल्याणकारी संस्थाओं का गठन एवं राष्ट्रीय संस्थाओं में सक्रिय भूमिका निभाई जिनका मुख्य कार्य बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर के विचारों का प्रचार-प्रसार और लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना था. दिल्ली एवं जयपुर दूरदर्शन पर इनके द्वारा किए गए साक्षात्कार एवं वार्ताएँ प्रसारित हुई हैं (मुख्य विषय). राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 60 लेख एवं कहानियाँ प्रकाशित. आकाशवाणी बीकानेर उदयपुर एवं जयपुर से भी अनेक कहानियाँ एवं वार्ताएं प्रसारित हुई हैं.

50 पुस्तकों का प्रकाशन एवं एक फिल्म "मैं भी एक इन्सान हूँ" का निर्माण। बाबा साहेब के विचारों के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से वर्ष 1991 से निरन्तर 22 वर्षों से भीम डायरी का प्रकाशन का कार्य किया.

अब तक दो अन्तर्राष्ट्रीय, छः राष्ट्रीय एवं अनेक राज्य स्तरीय पुरस्कार (नाम?) प्राप्त.

अब तक निम्नलिखित पुस्तकें प्रकाशित-
1-हिंदी उपन्यासों में दलित वर्ग,
2.हिंदी उपन्यासों में दलित नारी,
3.कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिए क्या किया,
4.जुड़ते दायित्व - कहानी संग्रह,
5.इस नारी को पहचान - काव्य कृति,
6.बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर 2 (हिंदी में गुजराती में)
7.बाबा साहेब के अनुयायी बौद्ध क्यों नहीं,
8.भारतीय नारी के उद्धारक- डॉ. अंबेडकर,
9.आर्थिक आधार पर आरक्षण- एक साजिश,
10.दलितों के दुश्मन थे गांधी,
11.पंद्रह प्रतिशत मनुवादियों का शासन उखाड़ फेंको- उत्तर प्रदेश में बसपा सरकार की उपलब्धियाँ,
12.कांग्रेस और गांधी आड़े नही आते तो डॉ. अंबेडकर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होते,
13.भारतीय राजनीति के आंदोलनकर्त्ता- कांशीराम,
14.त्याग, तप, कर्मशीलता और सादगी की प्रतिमूर्ति- माँ मोतीबाई मेघवाल,
15.खूब लड़ी मर्दानी वह तो लक्ष्मी नहीं झलकारी थी,
16.अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार अधिनियम 1989 (संकलन)
17.अवतारवाद के शिकार एक क्रान्तिकारी महामानव- मेघवाल बाबा रामदेव
18.मूलनिवासियो के त्योहार- ब्राह्मणवाद षडयंत्र के शिकार,
19.भारत में स्त्री दास्य,
20.डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर- पहली बाल पोथीजैसी कुल 50 पुस्तकें लिखी.

समाज सेवा विशेषतः असहाय बालकों एवं वृद्धों की सेवा में रुचि रही है1980 में महिला सेवा संघ सहित अनेकों संगठनों की स्थापना. राष्ट्रीय संगठनों और सामाजिक कार्यों में पर्याप्त एवं सक्रिय भागीदारी. कुछ वर्षों तक राजनीति में सक्रिय रहीं. एम.एल.. के दो एवं एम.पी का एक चुनाव लड़ा.

वर्तमान में पूर्ण रूप से सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन के लिए बाबा साहेब मिशन एवं विचारधारा के प्रचार-प्रसार हेतु राष्ट्रीय बौद्ध महापरिषद तथा अखिल भारतीय संवैधानिक अधिकार संरक्षण मंच का गठन कर राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत हैं. पूरे भारत में 'संविधान संरक्षण यात्रा' द्वारा जागरूकता लाने का कार्य किया. जागरण यात्रा- 9000 किमी, 25 दिन, 25 यात्री, एक बड़ी बस द्वारा.

दैनिक समाचार पत्र "परिवर्तन प्रभाकर" एवं त्रैमासिक पत्रिका "अस्मिता" का प्रकाशन पिछले चार वर्षों से निरन्तर जारी है.

(सूचना उपलब्ध कराने के लिए श्री राज बोस का आभार)