डॉ.
परिहार
के पिताजी और दादाजी जुलाहागीरी,
चर्मकारी
एवं खेती-बाड़ी
से जीवन-यापन
के साथ-साथ
भजन,
संत्संग
में भी रुचि रखते थे। इसलिए
जम्मा,
जागरणों
में अक्सर उनको बुलावा आ जाता
था। यहीं से आज के डॉ.
परिहार
की नींव पड़ी। वे अपनी पुस्तक
‘मेघवाल समाज का गौरवशाली
इतिहास’ में लिखते हैं कि --
‘इसी
माहौल में धीरे-धीरे
मेरे होठों पर भी कबीर के भजन
गुनगुनाने लगे’....।
कबीर की वाणियाँ श्रवण करते-करते
उनके मन में समाज सुधार,
आडम्बर,
अंधविश्वासों
के विरूद्ध चेतना पैदा होने
लगी। इस चेतना की परिणति तब
देखने को मिली जब वे बीकानेर
में बीवीएचसी कर रहे थे। वहीं
से वे मेघवाल समाज में सदियों
से फैले आडम्बर,
अंधविश्वासों
के विरूद्ध पेम्फलेट जारी
करने लगे।
लोग
इन आडम्बरो,
अंधविश्वासों
में इतने आकंठ डूबे हुए थे कि
उससे निकलना उनके लिए मुश्किल
था। लेकिन फिर भी वे लोग इन
पेम्फलेट्स को संभालकर रखने
लगे। यहीं से घनघोर अंधेरे
में समाज सुधार की एक महीन
रोशनी की किरण दिखाई देने लगी।
आगे
जाकर उन्हें लगा कि किसी एक
जाति समाज के सुधारने से ही
दबे-कुचले
पिछड़े समाज का उद्धार नहीं
होना है। उन्होंने डॉ.
भीमराव
अम्बेडकर को पढ़ा। गहन अध्ययन
से उनकी सोच का दायरा व्यापक
हुआ। अब कबीर साहब से उनके मन
में फूटी जागृति की लौ बाबा
साहब अम्बेड़कर के अध्ययन से
और तेजी से प्रज्जवलित होने
लगी। वे सम्पूर्ण दलित वर्ग
के उत्थान की सोचने लगे।
उन्हीं
दिनों में जयपुर से नवभारत
टाइम्स का प्रकाशन शुरू हुआ।
उसमें ‘पाठकों के पत्र’ कॉलम
में वे लिखने लगे। आपको बता
दें कि उस नवभारत टाइम्स ने
निष्पक्षता एवं निर्भीकता
से पाठकों के पत्र प्रकाशित
किए थे। इस कॉलम ने डॉ.
परिहार
के अलावा रमैयाराम कबीरपंथी,
डॉ.प्रेमचंद
गांधी,
रत्नकुमार
सांभरिया,
डॉ.
कुसुम
मेघवाल,
राजनलाल
जावा सहित अनेक लेखक पैदा किए।
जो आज प्रदेश के जाने-माने
लेखक एवं साहित्यकार हैं और
पत्र-पत्रिकाओं
में नियमित छपते हैं। डॉ.
परिहार
ने बेबाकी से इस कॉलम में अपने
विचार व्यक्त किए। उनके लेखन
को डॉ.
विश्वनाथ
के दिल्ली प्रकाशन के साहित्य
व सरिता-मुक्ता
पत्रिकाओं व उनके रिप्रिंट
के अध्ययन ने और धार दी।
जब
वे अपना प्रशिक्षण पूरा कर
पशु चिकित्सक बन गए। उनकी पहली
पोस्टिंग पाली जिले के आनन्दपुर
कालू में थी। बाद में वे सादड़ी
आ गए। यहाँ से उन्होंने अम्बेडकर
मिशन को गति देनी शुरू की।
अक्सर मैं और सहपाठी नारायण
रीण्डर हाईस्कूल से छूट्टी
होने के बाद बस्ते लेकर उनके
पास चले जाते थे। यहाँ हमसे
उम्र में बड़े श्री रतनलाल
सोलंकी,
श्री
रमेश भाटी,
श्री
ताराचंद माधव,
श्री
रमेश रीण्ड़र इत्यादि उनका
सान्निध्य पाते और बाबा साहब
को समझने का अवसर पाते थे।
उनके पास अक्सर राजस्थान बैंक
के अधिकारी श्री लखमाराम
परमार,
कृषि
विभाग के संयुक्त निदेशक
पुखराज मेंशन,
सहायक
कृषि अधिकारी कुन्नालाल सहित
अधिकारी-कर्मचारी
आते रहते थे। यह मिलन इस क्षेत्र
में अम्बेडकर मिशन का प्रादुर्भाव
कर गया। उन्होंने पहली बैठक
सादड़ी के मेघवालों के बड़ा बास
में श्री वालाराम सोलंकी पुत्र
कूपारामजी सोलंकी के घर की
और एकत्र लोगों को अंधविश्वास,
रूढ़ीवादी
सोच से उबरने को प्रेरित किया।
डॉ.
परिहार
प्रगतिशील विचारधारा के हैं।
जयपुर में श्री बीरबल चित्राल
की पुत्री डॉ.
मंजुला
जी से उनका विवाह हुआ। जब करणवा
में घोड़ी पर सवार होकर उनकी
बंदौली निकली तो कुछ लोगों
को बुरा लगा और रास्ते में
कचरा डाल दिया। इस घटना ने
उनके मन को और उद्वेलित किया।
इसके बाद में वे जयपुर पदस्थापित
हो गए। उन्होंने अम्बेडकर
मिशन को घर-घर
पहुँचाने की ठानी। उन्होंने
बाबा साहब की हजारों लेमिनेटेड
तस्वीरें तैयार करवाईं। घर-घर
दस्तक देकर उन्होंने महज बीस
रूपए में एक तस्वीर उपलब्ध
कराई। उन्होंने लोगों को
अम्बेडकर के योगदान के बारे
में बताया और उनका चित्र अपने
घर में टांगने के लिए प्रेरित
किया। टौंक फाटक में जब वे
घर-घर
जा रहे थे तो उनके इस अभियान
को देखने के लिए एक दिन मैं भी
उनके साथ रहा। ये वे दिन थे जब
दलित वर्ग कदम बढ़ा रहा था लेकिन
अन्य वर्गों की नफरत से बचने
के लिए घर में अम्बेडकर के
चित्र टांगने को हेय समझ रहा
था। मैं एक घर में उनके साथ
गया तो नवनिर्मित मकान के
मालिक ने कहा हम तस्वीरें नहीं
टांगेंगे। ऐसा करने से घर की
दीवारें खराब हो जाएँगी। उनके
इस मिशन की चर्चा तब नवभारत
टाइम्स में भी हुई थी। इन्हीं
दिनों में उन्होंने अपने लेखन
का दायरा बढ़ाया और नवभारत
टाइम्स में विविध विषयों पर
लिखने लगे। इस दरम्यान उन्होंने
पशुपालन अध्ययन के लिए विदेश
यात्रा भी की।
इसी
दौर में राजस्थान लोकसेवा
आयोग ने जिला पशुपालन अधिकारी
की रिक्तियाँ निकाली और वे
साक्षात्कार के बाद इस पद पर
चयनित कर लिए गए। इसी के साथ
उनका पदस्थापन पाली हो गया।
यहाँ आकर उन्होंने आवारा
कुत्तों की बढ़ती आबादी के
मद्देनजर उनकी आबादी को
नियंत्रित करने के लिए कुत्तों
में बंध्याकरण अभियान चलाया
जो प्रदेशभर में चर्चा का विषय
रहा। लेकिन कुछ वर्ष बाद वे
फिर से जयपुर लौट गए। उन्होंने
राजस्थान विश्वविद्यालय के
जनसंचार केन्द्र से पत्रकारिता
एवं जनसंचार में स्नातक उपाधि
भी हासिल की। -प्रमोदपाल
सिंह मेघवाल
(प्रमोदपाल
सिंह मेघवाल सौजन्य से)
thank u sheemanji apko Dr M L Parihar ke vishay me blog likhane ke liye. mane inki book pdha veri nice book(dalito bussin
ReplyDeletenes ki oyr badho.
mujhe dr parihar ji se milna hai. yadi esa sambhau hua to mujhe bahut khushi hogi.mai janana chahta hu jivan me kaise badhe tarakki kare. mai uttar prades ke jaunpur jile se hu. mai ek sc(dalit) student hu.
DeleteHe is in Navi Mumbai today
DeleteSir wo bhim prwah me aapne Ramdew runicha ke nam se Jo lekh likha tha wo bejo na plyz
ReplyDeleteJai bhim
Dr M L Parihar sahb ki 3..4 books padhi h.. Jo unhone unuwad kiya h bhudha and his Dharma or annihilation of caste. Or dalit kodi se kridpati.. Or n r ambedakr, in sabhi books me baar tathagat goutam bhudh ko Bhagwan bhudha k naan se ucharit kiya gya h.. Esa kyo.. Jbki baba Sahab k mul books me Esa nhi h. .Na hi gotam Buddha bhagwan h. . Muje esaka answer se santust krwayre .. Ya M L Parihar sahb ka mail id bheje taki me un se Jan sku.. Think
ReplyDeleteDr M L Parihar sahb ki 3..4 books padhi h.. Jo unhone unuwad kiya h bhudha and his Dharma or annihilation of caste. Or dalit kodi se kridpati.. Or Dr B R ambedakr, in sabhi books me baar baar tathagat goutam bhudh ko "Bhagwan bhudha" k naan se ucharit kiya gya h.. Esa kyo.. Jbki baba Sahab k mul books me Esa nhi h. .Na hi gotam Buddha bhagwan h. . Muje esaka answer se santust krwayre .. Ya M L Parihar sahb ka mail id bheje taki me un se Jan sku.. Think you
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ReplyDeletesir...i want baba saheb potrait....how i can get it form jaipur.....?
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ReplyDeleteमेघवाल समाज का गौरवशाली इतिहास पुस्तक कैसे प्राप्त की जाए मुझे चाहिए
ReplyDeleteML SIR AAP MERE PAPA KE FRIEND THE PALI ,AAP KE CONTACT NUMBER MIL SAKTE HAI,
ReplyDeleteमैं बहुत ही भाग्यशाली हूं कि मैं घुमक्कड़ कालबेलिया समाज में पैदा हुआ और मेरा भी जन्म गांव करणवा तहसील देसूरी जिला पाली राजस्थान मैं 10 मई 1964 हुआ शुरू से ही डॉक्टर एम एल परिहार साहब के सानिध्य में इनकी सेवा करने का मौका मिला और इन्हें के पद चिन्हों पर चल कर कालबेलिया समाज में बाबा साहेब का प्रचार व प्रसार किया परिहार साहब की प्रेरणा से ही मुझे सही जीवन जीने का रास्ता मिला मैं साहब का बहुत आभारी हूं
ReplyDeleteमै डॉ m l परिहार की जीवनी पढ़ कर प्रभावित हुआ हूं में sc का रैगर समाज से तालुख रखता हूं कृपया परिहार सा के नम्बर देवे ताकि मै उनसे संपर्क कर सकूं
ReplyDeleteSadr Jay bhim Jay Sambidhan Namo budhhay
ReplyDeleteJai bheem sir.
ReplyDeleteMain meghwal cast ka hu or IAS ki tayari kar raha hu or baba saheb ka naam roshan kar raha hu.
Hello sir my name is vijay raj singh i am uploading your book babasaheb ambedkar life and mission book by making youtube video i want to ask sir if you have any problem please answer
ReplyDelete(14-08-2014) डॉ. एम. एल. परिहार साहब का जन्म दिवस है।, PLS. WRONGLY D.O.B. to be correct.....regards
ReplyDeleteHello sir mene aap ki likhi book padi sir aap ne bada aacha article likha hai sir ji thanks
ReplyDeleteमेरे को मेघवाल समाज का गौरव शाली इतिहास चाहिए
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