May 30, 2020

Gulzari Lal - गुलज़ारी लाल

Sh. Gulzari Lal - श्री गुलज़ारी लाल, Subedar
Name : Gulzari Lal
J.C.-12002, Subedar
Unit-HQ 1 Corps
Father's name- Bulaqi Ram 
Caste - Megh
H.No. BC-119/1, Bhargava Nagar, Jalandhar City

Date of enrollment - 14-11-1941
15-05-1945

Date of discharge - 13-11-1969

Date of birth - 13-04-1923


भारत विभाजन के समय वे पाकिस्तान के क्वेटा में तैनात थे. तभी आर्मी ने सारे रिकार्ड सहित डिफेंस स्टाफ ट्रेनिंग कालेज में (ऊटी, तमिलनाडु) भेजा. उसके बाद उन्हें पठानकोट में तैनात किया गया था. 1949-50 में उनका स्थानांतरण पठानकोट में हुआ. 1969 में आर्मी की सेवा से निवृत्त होने के एक-दो वर्ष के बाद श्री गुलज़ारी लाल ने पंजाब शिड्यूल्ड कास्ट लैंड डिवेलपमेंट एंड फाइनेंस कार्पोरेशन, चंडीगढ़ में कार्य किया और प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर वहाँ से सेवानिवृत्त हुए. उनके सुपुत्र श्री अशोक भगत, जो इंडियन ओवरसीज़ बैंक से प्रबंधक के पद से रिटायर हुए हैं, याद करते हुए बताते हैं कि उनके पिता उल्लेख किया करते थे कि वे ईरान और इराक़ में तैनात रहे थे. 









May 26, 2020

Capt. Beli Ram

Captain Beli Ram - War veterans 
Captain Beli Ram s/o Sh. Dulo Ram, Village Gorda, P.O. Reasi, Tehsil Reasi, Distt. Udhampur, State J&K, Army Unit: Pioneer Corps


My father late Captain Beliram was born on 25th April 1918 in a village named Gorda, Tehsil Reasi, Distt. Udhampur, Jammu and Kashmir state. My father (late) Captain Beliram, my grandfather Late Sh. Dulo Ram and my forefathers owned a large chunk of land in a village Gorda which is still in our names (me and my brother Dr Baldev Singh) by way of inheritance.
 My father after completing his school education from the village only did involve in agriculture for sometime before joining the Army.  he got enrolled in the army on 25th April 1942 throughout his Service Career he was considered to be a sincere, hardworking and very focused Army personnel. his character was assessed as exemplary and it is recorded in his discharge book too.


Medals and Decorations
1. During his service, he earned many war medals, Special Mention World War II, India's Independence Medal, General Service Medal with class i.e. NEFA- 1947, Sainya Seva (Services) Medal, with J&K Raksha Medal.
2. he fought Second World War (1939-45) and War of 1965.
3. NEFA, J&K War as well.


After serving the Army for over 26 years my father Late Capt. Beli Ram retired with honour from Army on 16 January 1969. In recognition of his exemplary services, he was decorated with the Rank (Hony. Capt.) after retirement on 26 January 1969 in Delhi by the then President of India Sh. V.V. Giri.


After retirement, my father decided to settle in Chandigarh. Credit goes to my father late Capt. Beli Ram and my mother Late Smt. Tara Bhagat that they could give the best of education to their two children. My brother is a renowned ENT specialist, his wife too is a doctor, his daughter is Assistant Professor in Government Hospital, Sector-32, Chandigarh and son-in-law too is a Doctor in Medicine in Government Hospital at Panipat, his son has settled in Canada while myself (daughter) am married to a senior judicial officer.
My father breathed his last and left for his heavenly Abode on 3rd June 2006 at the age of 88 years leaving behind a rich legacy. 


कैप्टेन बेली राम - युद्ध के दिग्गज


कैप्टेन बेली राम सुपुत्र श्री दुलो राम, ग्राम गोरदा, पी.ओ. रियासी, तहसील रियासी, जिला उधमपुर, जम्मू और कश्मीर राज्य, आर्मी यूनिट : पायनियर कोर्प्स.


मेरे पिता स्वर्गीय कैप्टन बेलीराम का जन्म 25 अप्रैल 1918 को गाँव गोरदा, तहसील रियासी, जिला उधमपुर, जम्मू और कश्मीर राज्य में हुआ था. मेरे पिता (दिवंगत) कैप्टन बेलीराम, मेरे दादा स्वर्गीय श्री दुलो राम और मेरे पुरखों के पास गाँव गोरदा में जमीन के एक बड़े हिस्से पर मालिकाना हक था, जो अभी भी विरासत के रूप में हमारे (मेरे और मेरे भाई डॉ. बलदेव सिंह) के नाम पर है.
मेरे पिता ने गाँव से केवल स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद सेना में भर्ती होने से पहले कुछ समय के लिए खेती-बाड़ी का कम किया. फिर वे 25 अप्रैल 1942 को सेना में भर्ती हो गए. आर्मी सेवा के दौरान उन्हें एक ईमानदार, मेहनती और बहुत ही सेवा केंद्रित सेना का जवान माना गया. उनके चरित्र का मूल्यांकन ‘अनुकरणीय’ के तौर पर उनकी डिस्चार्ज बुक में भी दर्ज है.


पदक और सजावट (डेकोरेशन)
1. अपनी सेवा के दौरान उन्होंने कई युद्ध पदक अर्जित किए, स्पेशल मेंशन वर्ल्ड वॉर II, भारत का स्वतंत्रता पदक, क्लास के साथ जनरल सर्विस मेडल यानी NEFA- 1947, सैनिक सेवा (सर्विसेज) मेडल, जे एंड के रक्षा मेडल के साथ.
2. उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) और 1965 का युद्ध लड़ा.
3. NEFA, J & K वार भी.


26 साल से अधिक समय तक सेना में रहने के बाद मेरे पिता स्वर्गीय कैप्टन बेली राम 16 जनवरी 1969 को सेना से ससम्मान सेवानिवृत्त हुए. उनकी अनुकरणीय सेवाओं को मान्यता देते हुए उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री वी.वी. गिरि ने दिल्ली में 26 जनवरी 1969 को रैंक (ऑनरेरी कैप्टन) से अलंकृत किया. 


सेवानिवृत्ति के बाद, मेरे पिता ने चंडीगढ़ में बसने का फैसला किया. इसका श्रेय मेरे पिता स्वर्गीय कैप्टन बेली राम और मेरी स्वर्गीय माता श्रीमती तारा भगत को जाता है. चंडीगढ़ में रह कर वे अपने दोनों बच्चों को सबसे अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते थे. मेरा भाई एक प्रसिद्ध ईएनटी विशेषज्ञ है, उसकी पत्नी भी एक डॉक्टर है, उसकी बेटी सरकारी अस्पताल, सेक्टर -32, चंडीगढ़ में असिस्टेंट प्रोफेसर है और दामाद भी पानीपत के सरकारी अस्पताल में मेडिसिन के डॉक्टर हैं, उसका बेटा कनाडा में बसा है जबकि उनकी बेटी (यानि मेरा) विवाह एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी से हुआ.


मेरे पिता ने 03 जून 2006 को 88 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली. वे अपने पीछे एक समृद्ध विरासत पीछे छोड़ गए.

(नोट - उनकी बिटिया श्रीमती विजय रूजम ने बताया है कि कैप्टेन बेली राम जी रंगून के फ्रंट पर गए थे.)


कैप्टेन बेलीराम जी के पारिवारिक फोटो :-









(आदरणीय ताराराम जी ने शोध के बाद कुछ विवरण एकत्र किए हैं और उसे इस प्रकार संजोया है)-


द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945) के शूरवीर: कैप्टन मेघ बेलीराम


द्वितीय विश्वयुद्ध के समय मेघ बेलीराम ग्राम गोरदा, तहसील रियासी में प्रारंभिक शिक्षा के बाद अपने पिता दूलोराम के साथ खेती-बाड़ी के कार्य में लगे हुए थे। जब सेना में भर्ती की जाने लगी तो युवा बेलीराम 25 अप्रैल 1942 में सेना में नामांकित हो गए। उस समय भारत-बर्मा-चीन सीमा पर जापान आगे बढ़ रहा था और जर्मनी की सेना उनके साथ थी। धुरी राष्ट्रों की सेनाओं का मुकाबला करने के लिए अमेरिका की सेना हिन्द-महासागर होते हुए कलकत्ता पहुंच चुकी थी और उसकी तैनाती बर्मा बॉर्डर पर की जा चुकी थी। जहां सेना 'लेडो से रंगून' तक वैकल्पिक सड़क निर्माण के साथ युद्धरत भी थी।

धुरी राष्ट्रों की सेनाओं ने चीन की सेना को खदेड़ते हुए चीन और बर्मा के राजमार्ग को अपने कब्जे में ले लिया था। नैनीताल के पास रामपुर में चीनी सैनिकों को प्रशिक्षित किया गया और उन्हें धुरी राष्ट्रों की सेनाओं को रोकने के लिए और बर्मा को पुनः जीतने के लिए ब्रिटिश भारतीय सेना के कई डिविजन्स के साथ वहां तैनात किया गया। युवा सैनिक बेलीराम की तैनाती भी उसी इंडियन इन्फेंट्री ब्रिगेड में थी, जो बर्मा की सीमा पर युद्धरत थी।

युद्ध के दौरान युवा बेलीराम ने साहस एवं शौर्य के साथ दुश्मनों का मुकाबला किया। एक तरह से यह गुरिल्ला वॉर से कम नहीं था। कभी युद्ध रुकता, कभी अचानक किसी भी हिस्से पर आक्रमण हो जाता। युवा सैनिक बेलीराम और अन्य साथियों ने सदैव सजगता एवं शौर्य से युद्ध-मैदान में अपनी बहादुरी दिखाई। सन 1945 में जापानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया व मित्र राष्ट्रों की जीत हुई। इस युद्ध अभियान में उत्कृष्ट बहादुरी और वीरता के लिए बेलीराम को वॉर मैडल/विक्ट्री मैडल 1939-1945, वॉर स्टार मैडल 1939-1945, बर्मा स्टार मैडल व अन्य डेकोरेशन आदि प्रदान कर सम्मानित किया गया। उनका नाम विशेष उल्लेख के साथ डिस्पैच में उल्लेखित किया गया।

बहादुर मेघ बेलीराम जी ने सदैव बहादुरी और निष्ठा से सैनिक कर्तव्य का पालन किया। उन्हें प्रोन्नत कर अधिकारी बना दिया गया। देश आजाद होने पर वे स्वतंत्र भारतीय सेना के सिपाही हो गए। उन्हें इस अवसर पर स्वतंत्रता मैडल देकर उनकी सैन्य-सेवा का सम्मान किया गया। सन 1947 में ही जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया तो बेलीराम जी की तैनाती कश्मीर की युद्ध भूमि पर हो गयी। उस युद्ध में भी अदम्य साहस औऱ बहादुरी के लिए उन्हें जम्मू-कश्मीर मैडल 1947-48 देकर सम्मानित किया गया। उत्कृष्ट सेवा के लिए उन्हें सैन्य सेवा अवार्ड और डिफेंस मैडल देकर उनकी सैन्य सेवा का सम्मान किया गया। उन्होंने नेफा क्षेत्र में भी भाग लेकर शांति बहाली में हिस्सा लिया था। इस हेतु भी उन्हें नेफा डेकोरेशन व पुरस्कार प्रदान किया गया।

उनकी सेवा अवधि में ही 1962 व 1965 में चीन व पाकिस्तान द्वारा किये गए आक्रमणों में बहादुरी से जंग लड़ा और इन दोनों ही युद्धों में भारत को विजय दिलाने में सैनिक-कर्तव्य का निर्वहन किया। श्री बेलीराम एक सैनिक से कैप्टेन के पद तक अपने कौशल व बहादुरी के बल पर पहुंच सके। इन युद्धों में बहादुरी से भाग लेकर वे 16 जनवरी 1969 को सेवा निवृत्त हो गए। उनकी उत्कृष्ट सैन्य-सेवा के लिए 26 जनवरी 1969 को राष्ट्रपति  श्री वी. वी. गिरी ने दिल्ली में उन्हें सम्मानित किया।

सेवानिवृति के बाद कैप्टन बेलीराम चंडीगढ़ में स्थायी रूप से बस गए और वहां सामाजिक कार्यों में लोगों को मार्गदर्शन प्रदान करते रहे। कैप्टन बेलीराम का 88 वर्ष की आयु में दिनांक 3 जून 2006 को चंडीगढ़ में देहावसान हो गया। बहादुर, नेक दिल, अनुशासन प्रिय कैप्टन बेलीराम जी आज हमारे बीच में नहीं है, परंतु उनकी बहादुरी, अनुशासनप्रियता और युद्ध कौशल के लिए वे सदैव स्मरणीय रहेंगे। द्वितीय विश्वयुद्ध के सभी सैनिकों के साथ उनको भी कोटि-कोटि नमन, जिन्होंने सदैव देश और जाति का नाम ऊंचा किया!


Subedar Harbans Lal


हरबंस लाल सुपुत्र श्री मेंहगा राम, पायनियर कोर्प्स, हेड क्वार्टर मथुरा, (PNR CORPS), Rank No.205268, एनरोलमेंट तिथि 30-10-41, रिलीज़ की तिथि 11-01-51.
बरमा बैटल, 2रा विश्वयुद्ध (1939-1945),
वे बताया करते थे कि जिस समुद्री जहाज़ पर वे थे उसे जापान की फौज ने टॉरपीडो किया था और वे बमुश्किल बचे थे.
जे एंड के 1947 बैटल,

मैडल और डेकोरेशन

मेडल बरमा मेडल, जे एंड के मेडल, वार मेडल, मेन्शनिंग डिस्पैचिज़ फ्रॉम प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया, थ्रू आर्मी चीफ़ (19-02-1951), द इंडिपेंडेंस मेडल.
उनकी पोस्टिंग का स्थान लीडो (Ledo) उल्लिखित है.
आर्मी से रिटायर हो कर वे होम गार्ड्स में कार्यरत रहे (सेवानिवृत्त होने की तारीख?) 
उन्होंने भारगो कैंप, जालंधर में रहते हुए आर्यसमाज के लिए बहुत कार्य किया, इमरजेंसी के दौरान उन्होंने बीजेपी ज्वायन कर ली थी और कार्यकर्ता के रूप में जेल गए. इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार श्री रोशन लाल के लिए प्रचार किया.
आर्मी के बाद उन्होंने होम गार्ड्स में भी नौकरी की और साथ ही सामाजिक कार्यों में भी संलग्न रहे.
उनके सुपुत्र डॉ. अशोक भगत मेजर की हैसियत में सेना में रहे. पंजाब विधानसभा के डिप्टी स्पीकर और मंत्री रहे श्री चूनी लाल उनके समधी हैं.जन्मतिथि? निर्वाण तिथि ? 

डॉ. अशोक भगत बताते हैं कि सूबेदार हरबंस लाल जी को आर्मी में जाने की प्रेरणा बाबू गोपी चंद जी ने दी थी जो स्वयं आर्मी में रह चुके थे.
उनके अलावा नायब सूबेदार अमींचंद,

सूरानसी  


(आदरणीय ताराराम जी ने शोध के बाद कुछ विवरण एकत्र किए हैं और उसे इस प्रकार संजोया है)-


23. द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945) के शूरवीर: सूबेदार मेघ हरबंस लाल

द्वितीय विश्वयुद्ध में जब भारत- बर्मा-चीन सीमा पर युद्ध प्रारम्भ हुआ तो मेघ मेंहगाराम जी भगत के युवा पुत्र हरबंस लाल भी इंडियन पायनियर कोर्प्स में भर्ती हो गए। उस समय पायनियर कॉर्प्स का हेड क्वार्टर मथुरा हुआ करता था। युवा हरबंस लाल मेघ का सेना में दिनांक 30. 10. 1941 को एनरॉलमेंट हुआ और आवश्यक ट्रेनिंग के बाद आपको बर्मा बॉर्डर पर भेज दिया गया।

जब उन सैनिकों को लेकर जहाज हिंद-महासागर से बर्मा जा रहा था तो उनके समुद्री जहाज़ को जापान की फौज ने टॉरपीडो किया था और वे बमुश्किल बचे थे। दुश्मनों से लड़ते हुए सभी सैनिक बर्मा की भूमि पर पहुंच कर युद्ध रत हुए और बहादुरी से लड़कर युद्ध को जीता। हरबंस लाल जी सन 1941 के अंत में युद्ध भूमि पर पहुंचे और उन्होंने सन 1942, 1943, 1944 व 1945 के विभिन्न युद्ध अभियानों में साहस और शौर्य का प्रदर्शन किया।

बर्मा रोड को जापान ने कब्जे में कर लिया था। इसलिए अमेरिकी सैनिकों द्वारा बनाई जाने वाली नई रोड, जो लीडो से रंगून तक 130 मील की थी, अधिकांशतः आपकी तैनाती इस युद्ध-भूमि में ही रही और बर्मा को इसी वैकल्पिक रास्ते से पुनः विजित करने में कामयाब हुए।

द्वितीय विश्वयुद्ध में अदम्य साहस और बहादुरी के लिए हरबंस लाल जी को वॉर मैडल/विक्ट्री मैडल--1939-1945, वॉर स्टार मैडल 1939-1945 व बर्मा स्टार मैडल देकर सम्मानित किया गया। युद्ध समाप्ति के बाद स्वतंत्र भारत की सेना में बतौर सैनिक तैनात रहे व जब पाकिस्तान ने कश्मीर को हथियाने के लिए कश्मीर पर आक्रमण (1947-1948) कर दिया तो आपकी तैनाती कश्मीर के युद्धक्षेत्र में हो गयी। इस युद्ध में भी आपने शौर्य व बहादुरी का प्रदर्शन किया। जिस हेतु भी उन्हें पुरस्कृत किया गया। उन्हें 'इंडिपेंडेंस मैडल' व 'जम्मू-कश्मीर का पदक' देकर सम्मानित किया गया व राष्ट्रपति को भेजे जाने वाले डिस्पैच में आपका नाम दर्ज किया गया।

सेना में मुश्तैदी व कुशल सेवा के लिए सूबेदार रैंक में पदोन्नति दी गई। कश्मीर युद्ध समाप्ति के बाद दिनांक 10 जनवरी 1951 को सूबेदार मेघ हरबंसलाल भगत सेवा से निवृत होकर जालंधर में जा बसे व आर्यसमाज से जुड़ गए। मेघ हरबंस लाल जीवन भर वहां सामाजिक कार्यो में सक्रिय रहे। इसलिए आर्य-समाजी भी उन्हें श्रद्धा से याद करते है। हमें यह भी जानकारी मिली है कि उनके पुत्र डॉ अशोक ने भी अपने पिता की तरह ही सेना में नौकरी की और मेजर रैंक तक पहुंचे।

आज मेघ हरबंस लाल जी हमारे बीच में नहीं है, परंतु उनका शौर्य व सामाजिक कार्य उनकी याद को सदैव बनाये रखेगा। द्वितीय विश्वयुद्ध के वीर-सैनिकों के साथ हम उन्हें भी नमन करते है।