हरबंस लाल सुपुत्र श्री मेंहगा राम, पायनियर कोर्प्स, हेड क्वार्टर मथुरा, (PNR CORPS), Rank No.205268, एनरोलमेंट तिथि 30-10-41, रिलीज़ की तिथि 11-01-51.
बरमा बैटल, 2रा विश्वयुद्ध (1939-1945),
वे बताया करते थे कि जिस समुद्री जहाज़ पर वे थे उसे जापान की फौज ने टॉरपीडो किया था और वे बमुश्किल बचे थे.
जे एंड के 1947 बैटल,
मैडल और डेकोरेशन
मेडल बरमा मेडल, जे एंड के मेडल, वार मेडल, मेन्शनिंग डिस्पैचिज़ फ्रॉम प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया, थ्रू आर्मी चीफ़ (19-02-1951), द इंडिपेंडेंस मेडल.
उनकी पोस्टिंग का स्थान लीडो (Ledo) उल्लिखित है.
बरमा बैटल, 2रा विश्वयुद्ध (1939-1945),
वे बताया करते थे कि जिस समुद्री जहाज़ पर वे थे उसे जापान की फौज ने टॉरपीडो किया था और वे बमुश्किल बचे थे.
जे एंड के 1947 बैटल,
मैडल और डेकोरेशन
मेडल बरमा मेडल, जे एंड के मेडल, वार मेडल, मेन्शनिंग डिस्पैचिज़ फ्रॉम प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया, थ्रू आर्मी चीफ़ (19-02-1951), द इंडिपेंडेंस मेडल.
उनकी पोस्टिंग का स्थान लीडो (Ledo) उल्लिखित है.
आर्मी से रिटायर हो कर वे होम गार्ड्स में कार्यरत रहे (सेवानिवृत्त होने की तारीख?)
उन्होंने भारगो कैंप, जालंधर में रहते हुए आर्यसमाज के लिए बहुत कार्य किया, इमरजेंसी के दौरान उन्होंने बीजेपी ज्वायन कर ली थी और कार्यकर्ता के रूप में जेल गए. इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार श्री रोशन लाल के लिए प्रचार किया.
आर्मी के बाद उन्होंने होम गार्ड्स में भी नौकरी की और साथ ही सामाजिक कार्यों में भी संलग्न रहे.
उनके सुपुत्र डॉ. अशोक भगत मेजर की हैसियत में सेना में रहे. पंजाब विधानसभा के डिप्टी स्पीकर और मंत्री रहे श्री चूनी लाल उनके समधी हैं.जन्मतिथि? निर्वाण तिथि ?
आर्मी के बाद उन्होंने होम गार्ड्स में भी नौकरी की और साथ ही सामाजिक कार्यों में भी संलग्न रहे.
उनके सुपुत्र डॉ. अशोक भगत मेजर की हैसियत में सेना में रहे. पंजाब विधानसभा के डिप्टी स्पीकर और मंत्री रहे श्री चूनी लाल उनके समधी हैं.जन्मतिथि? निर्वाण तिथि ?
डॉ. अशोक भगत बताते हैं कि सूबेदार हरबंस लाल जी को आर्मी में जाने की प्रेरणा बाबू गोपी चंद जी ने दी थी जो स्वयं आर्मी में रह चुके थे.
उनके अलावा नायब सूबेदार अमींचंद,
उनके अलावा नायब सूबेदार अमींचंद,
सूरानसी
(आदरणीय ताराराम जी ने शोध के बाद कुछ विवरण एकत्र किए हैं और उसे इस प्रकार संजोया है)-
23. द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945) के शूरवीर: सूबेदार मेघ हरबंस लाल
द्वितीय विश्वयुद्ध में जब भारत- बर्मा-चीन सीमा पर युद्ध प्रारम्भ हुआ तो मेघ मेंहगाराम जी भगत के युवा पुत्र हरबंस लाल भी इंडियन पायनियर कोर्प्स में भर्ती हो गए। उस समय पायनियर कॉर्प्स का हेड क्वार्टर मथुरा हुआ करता था। युवा हरबंस लाल मेघ का सेना में दिनांक 30. 10. 1941 को एनरॉलमेंट हुआ और आवश्यक ट्रेनिंग के बाद आपको बर्मा बॉर्डर पर भेज दिया गया।
जब उन सैनिकों को लेकर जहाज हिंद-महासागर से बर्मा जा रहा था तो उनके समुद्री जहाज़ को जापान की फौज ने टॉरपीडो किया था और वे बमुश्किल बचे थे। दुश्मनों से लड़ते हुए सभी सैनिक बर्मा की भूमि पर पहुंच कर युद्ध रत हुए और बहादुरी से लड़कर युद्ध को जीता। हरबंस लाल जी सन 1941 के अंत में युद्ध भूमि पर पहुंचे और उन्होंने सन 1942, 1943, 1944 व 1945 के विभिन्न युद्ध अभियानों में साहस और शौर्य का प्रदर्शन किया।
बर्मा रोड को जापान ने कब्जे में कर लिया था। इसलिए अमेरिकी सैनिकों द्वारा बनाई जाने वाली नई रोड, जो लीडो से रंगून तक 130 मील की थी, अधिकांशतः आपकी तैनाती इस युद्ध-भूमि में ही रही और बर्मा को इसी वैकल्पिक रास्ते से पुनः विजित करने में कामयाब हुए।
द्वितीय विश्वयुद्ध में अदम्य साहस और बहादुरी के लिए हरबंस लाल जी को वॉर मैडल/विक्ट्री मैडल--1939-1945, वॉर स्टार मैडल 1939-1945 व बर्मा स्टार मैडल देकर सम्मानित किया गया। युद्ध समाप्ति के बाद स्वतंत्र भारत की सेना में बतौर सैनिक तैनात रहे व जब पाकिस्तान ने कश्मीर को हथियाने के लिए कश्मीर पर आक्रमण (1947-1948) कर दिया तो आपकी तैनाती कश्मीर के युद्धक्षेत्र में हो गयी। इस युद्ध में भी आपने शौर्य व बहादुरी का प्रदर्शन किया। जिस हेतु भी उन्हें पुरस्कृत किया गया। उन्हें 'इंडिपेंडेंस मैडल' व 'जम्मू-कश्मीर का पदक' देकर सम्मानित किया गया व राष्ट्रपति को भेजे जाने वाले डिस्पैच में आपका नाम दर्ज किया गया।
सेना में मुश्तैदी व कुशल सेवा के लिए सूबेदार रैंक में पदोन्नति दी गई। कश्मीर युद्ध समाप्ति के बाद दिनांक 10 जनवरी 1951 को सूबेदार मेघ हरबंसलाल भगत सेवा से निवृत होकर जालंधर में जा बसे व आर्यसमाज से जुड़ गए। मेघ हरबंस लाल जीवन भर वहां सामाजिक कार्यो में सक्रिय रहे। इसलिए आर्य-समाजी भी उन्हें श्रद्धा से याद करते है। हमें यह भी जानकारी मिली है कि उनके पुत्र डॉ अशोक ने भी अपने पिता की तरह ही सेना में नौकरी की और मेजर रैंक तक पहुंचे।
आज मेघ हरबंस लाल जी हमारे बीच में नहीं है, परंतु उनका शौर्य व सामाजिक कार्य उनकी याद को सदैव बनाये रखेगा। द्वितीय विश्वयुद्ध के वीर-सैनिकों के साथ हम उन्हें भी नमन करते है।
Subedar Harbans लाल के बारे में पढ़ कर बहुत अच्छा लग। धन्यवाद आपने ये पोस्ट शेयर की।
ReplyDeleteMaurya Vansh