यह वही समय था जब 1882 में भारत सरकार द्वारा कराई गई पहली जनगणना से मालूम हुआ कि अछूत कहे जाने वाले कई लाख लोग नाम के ही हिंदू थे. उन्हें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक काम करने और शिक्षा लेने का हक़ नहीं था. और हर तरफ़ शोर मचाया जा रहा था कि उन्हें ईसाई बनाया जा रहा है.
यह वही समय था जब पंजाब में आर्यसमाज की स्थापना हो चुकी थी. पंजाब के आर्यसमाजी कार्यकर्ता लाला गंगाराम ने बताया कि 1880 में मेघों ने स्यालकोट के आर्यसमाजियों को अर्ज़ी दी थी कि उनके सामाजिक स्तर का फिर से र्निधारण किया जाए और स्तर को ऊँचा उठाया जाए. गंगाराम ने ईसाई, इस्लाम और सिख धर्मों के उदाहरण दिए जिनमें जाति और धर्म आधारित भेदभाव नहीं था. लेकिन हिंदुओं ने पूरी कड़ुवाहट के साथ इसका लगातार विरोध किया. (मेघों ने ऐसा कोई आवेदन किया था या नहीं इसकी पुष्टि अभी बाकी है). कहा जाता है कि लाला गंगाराम के लगातार दबाव डालने से आर्यसमाज की कार्यकारी समिति ने यह काम एक रजिस्टर्ड संस्था 'आर्य मेघ उद्धार सभा' को देने का फैसला किया. इस संस्था की अगुआई लाला गंगाराम ख़ुद कर रहा था.
यह वही समय था जब मेघों का 'शुद्धिकरण' करके उन्हें हिंदुओं की सबसे निचली जातियों में ऱखा गया और आर्यसमाज में दाख़िल किया गया. आर्यसमाज का दावा था कि स्यालकोट के 36000 मेघों का शुद्धिकरण करके उन्हें ‘आर्य-भक्त’ बनाया गया था.
कहा जाता है कि लाला गंगाराम ने मेघों को 'भगत' कहा था और मेघों ने 'भगत' नामकरण स्वीकार कर लिया क्योंकि इस क्षेत्र में अधिकांश मेघ मध्यकालीन संतों कबीर आदि के प्रति आस्था रखते थे. उन संतों को भारतीय समाज सदियों से 'भगत' कहता आ रहा था.
उन हालात में डालोवाली गाँव के हंसराज भगत और ननजवाल गाँव के जगदीश मित्र ने 1935 तक आर्यसमाज की मुहिम के तहत शिक्षा प्राप्त की और दोनों ने LLB की.
उधर सन् 1925 में बाबू मंगूराम मुग्गोवालिया, गाँव मुग्गोवाल, तहसील गढ़शंकर, ज़िला होशियारपुर ने एक आदधर्म मुहिम शुरू की. यह मुहिम अछूतों के इस पक्ष को रेखांकित करती थी कि वे भारत में आर्यों के आने से पहले ही सप्त-सिंधु या ग्रेटर पंजाब में बसे हुए थे. इस मुहिम के असर को रोकने के लिए आर्यसमाज ने पूरी ताकत लगा दी. आदधर्म आंदोलन मेघ समुदाय को अधिक प्रभावित नहीं कर सका क्योंकि यह समुदाय काफी हद तक आर्यसमाज से प्रभावित था.
बताना ठीक ही होगा कि आर्यसमाज द्वारा शिक्षित दो युवकों में से पहले जगदीश मित्र की ज़िंदगी छोटी रही. दूसरे युवक हंसराज ने स्यालकोट में वकालत शुरू कर दी. उन्होंने एक आदधर्मी लड़की से विवाह किया. आर्यसमाजियों को यही बात पसंद नहीं आई. इसी वजह से भगत हंसराज के आर्यसमाजी दोस्त उनकी शादी में शामिल नहीं हुए. खासकर यह वजह बता कर कि शुद्ध किए गए आर्य-भक्त मेघ अन्य की तुलना में ऊँची जाति के हैं और कि आद धर्मियों के साथ उनका 'रोटी-बेटी' का संबंध नहीं रहा था. लेकिन हंसराज जी डॉ. भीमराव अंम्बेडकर और बाबू मुग्गोवालिया के विचारों से प्रभावित थे. अंबेडकर के विचारों के अनुरूप हंसराज चाहते थे कि दलित लोग जाति व्यवस्था से ऊपर उठें.
उधर लाला गंगाराम ने अपने नेतृत्व में बनवाई 'मेघ उद्धार सभा' के लिए अंग्रेज़ सरकार से कुछ बंजर ज़मीन लीज़ पर ली जो तहसील खानेवाल, ज़िला मुल्तान में पडती थी. इस पर कुछ मेघ परिवारों को बसा कर उन्हें खेती करने के लिए रखा गया. इस भूखंड को 'आर्य नगर' नाम दिया गया. खेती करने वाले मेघों को फसल का 50 प्रतिशत हिस्सा मिलता था. आगे चल कर मेघ टेनेंट्स ने दबाव बनाया कि उनका हिस्सा दो तिहाई किया जाए. लाला गंगाराम इस पर राज़ी नहीं था और उसके साथ कुछ हाथापाई भी हुई.
कानून के जानकार हंसराज ने 'मेघ उद्धार सभा' के नाम से बने ट्रस्ट द्वारा इन बँटाईदार (Share cropper) मेघों के शोषण की हालत को जाना. यह ज़मीन अंग्रेज़ सरकार ने ट्रस्ट को लीज़ पर दी थी जबकि बँटाईदार के तौर पर मेघों का मेहनताना बहुत कम रखा गया था. समाजसेवा की आढ़ में हो रहे इस नाटक के पीछे कुछ गलत था. हाथापाई हुई. एक अदालती केस एडवोकेट हंसराज की अगुवाई में कोर्ट ले जाया गया. ट्रस्ट का प्रतिनिधित्व गंगाराम कर रहा था. एडवोकेट हंसराज केस जीत गए. उन्होंने यह केस मेघों के तथाकथित महान सुधारक लाला गंगाराम के विरुद्ध जीता था. केस जीतने के बाद वे बँटाईदार मेघ-किसान कानूनन ज़मीनों के मालिक बन गए. श्री आर.एल. गोत्रा जी ने बताया है कि जालंधर के कुछ आर्यसमाजी मेघ कहते हैं कि भगत हंसराज ने मेघों को आर्यनगर की ज़मीन का वाजिब हक़ दिलाने के लिए जो मुक़द्दमा किया था उस पर अदालती निर्णय न हो कर बाहर ही समझौता हो गया था.
हंसराज जी 1935 तक आर्यसमाज की मदद से हुई अपनी शिक्षा के लिए आर्यसमाज के आभारी थे लेकिन शिक्षा की बदौलत वे दलितों की हालत को बदतर बनाने के तरीकों को भली प्रकार समझने लगे थे. डॉ. अंबेडकर और बाबू मंगूराम के प्रति वे लगाव रखने लगे थे. यह उन आर्यसमाजियों को पसंद नहीं आया जो हंसराज को शिक्षा के लिए दी गई वित्तीय सहायता के बदले उनमें एक हिंदूवादी और आर्यसमाजी कार्यकर्ता देखने का सपना पाले हुए थे. असल में उन्हें यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि हंसराज अपने समाज के लोगों को न्याय दिलाने के लिए अदालत चला जाएगा और केस भी जीत जाएगा.
लोग बताते हैं कि जिस मेघ समूह ने आदधर्मी लड़की से शादी करने पर हंसराज भगत का सामाजिक बहिष्कार किया था उसी समूह ने आगे चल कर अविभाजित पंजाब के विधानसभा चुनाव में हंसराज के विरुद्ध खड़े चौधरी सुंदर सिंह के हक में सक्रिय रूप से प्रचार करके मेघों के वोट दिलाए. ये चौधरी सुंदर सिंह आदधर्मी थे. यानि मेघों ने एक आदधर्मी लड़की से शादी करने वाले मेघ को वोट न देकर एक आदधर्मी नेता को वोट दे दिया. श्री सुंदर सिंह एक अच्छे नेता थे लेकिन इससे मेघ समुदाय के व्यवहार का एक हानिकारक अंतर्विरोध सामने आया.
कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा अक्तूबर 1966 में प्रकाशित 'डॉ. अंबेडकर का साहित्य और संभाषण' (Writings and Speeches of Dr. Ambedkar, published by Ministry of Welfare, G.O.I., New Delhi, Oct. 1966 Edition) से यह रुचिकर बात पता चलती है कि पंजाब के आर्य हिंदू इस बात पर असहमत थे कि मेघ अछूतों में आते थे. हालाँकि मेघ ऐतिहासिक रूप से छुआछूत का शिकार रहे थे. डॉ. अंबेडकर से समर्थन प्राप्त हंसराज जी के प्रयासों से मेघों को अनुसूचित जातियों में रखा गया. यदि आर्य हिंदू सफल हो जाते तो आज़ादी के बाद मेघों को नौकरियों में आरक्षण का वो फायदा नहीं मिलता जिसकी वजह से वे कुछ तरक्की कर पाए हैं.
यहाँ इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि हंसराज जी ने 1937 में स्टेट असेंबली चुनावों में यूनियनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में इलैक्शन लड़ा था और वे कांग्रेस के चौधरी सुंदर सिंह से चुनाव हारे. इसकी वजह यह रही कि चिढ़े हुए आर्यसमाजियों ने गाँव पोथाँ, ज़िला स्यालकोट के निवासी भगत गोपीचंद को उनके खिलाफ चुनाव में खड़ा कर दिया. नतीजतन मेघों के वोट बँट गए. आगे चल कर 1945 में भगत हंसराज को आदधर्मी समुदाय और यूनियनिस्ट पार्टी का समर्थन मिला और वे यूनियनिस्ट पार्टी की ओर से नामांकित हो कर विधान परिषद के सदस्य बने और अनुसूचित जातियों का प्रतिनिधित्व किया.
पंजाब के हिंदू, मुसलमानों, दलितों और सिखों के हितों का ध्यान रखने के लिए गठित दस सदस्यीय 'पंजाब स्टेट फ्रैंचाइज़ कमेटी' में एडवोकेट हंसराज और जनाब के. बी. दीन मोहम्मद को सदस्य नियुक्त किया गया. हिंदुओं में सर छोटूराम और पंडित नायक चंद भी इसमें सदस्य थे. समिति के नौ सदस्यों (हिंदू और एक सिख प्रतिनिधि) ने रिपोर्ट दी कि यह कहना मुमकिन नहीं था कि उस समय के अविभाजित पजाब में कोई ऐसे दलित समुदाय थे जिनके धर्म को लेकर उनके सिविल अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो. लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि गाँवों में ऐसे वर्ग थे जिनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति निश्चित रूप से बहुत खराब थी. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि हालाँकि मुस्लिमों में कोई दलित नही हैं फिर भी हिंदुओं और सिखों में दलित थे और कि उस समय के अविभाजित पंजाब में उनकी कुल जनसंख्या 1,30,709 थी.
कुल मिला कर उस समिति ने बहुमत के साथ इंकार कर दिया था कि पंजाब में दलितों या अछूतों का कोई अस्तित्व था. लेकिन एडवोकेट हंसराज ने अपना एक अलग असहमति (dissenting) नोट दिया जिसमें कहा गया था कि समिति ने दलित समुदायों की जो सूची दी थी वो सूची अपूर्ण थी क्योंकि मेघों सहित कई समुदायों को उस सूची से बाहर रखा गया था. उनके उस असहमति नोट को महत्व दिया गया और पंजाब के दलित समुदायों को अनुसूचित जातियों में शामिल किया गया.
भारत विभाजन के बाद सेटेलमेंट मंत्रालय में एडवाइज़र सुश्री रामेश्वरी नेहरू, भगत हंसराज, श्री दौलत राम (मेघ), भगत गोपीचंद और भगत बुड्ढामल सभी ने समन्वित प्रयास किया और स्यालकोट से भारत में आए मेघों को अलवर (राजस्थान) आदि जगहों पर ज़मीनें दिला कर बसाया गया. भगत हंसराज राजनीतिक रूप से सक्रिय थे, श्री दौलत राम सेटेलमेंट ऑफिसर थे. इस टीम ने बहुत अच्छा कार्य किया और सफल रही. लाभ उठाने वाले भगतों में वे लोग भी शामिल थे जो कभी हंसराज भगत के विरोधी रहे थे.
आर्यसमाज और लाला गंगाराम का प्रयोजन और उद्देश्य चाहे कुछ भी क्यों न रहा हो, उन्होंने मेघों की शिक्षा के लिए जितना भी किया वह मेघों के लिए लाभकारी हुआ. आज़ादी के बाद मेघ समुदाय आर्यसमाज के एजेंडा में कहीं नहीं दिखा.
दूसरी ओर एडवोकेट भगत हंसराज और डॉ. अंबेडकर ने पंजाब के मेघों और अन्य दलित जातियों को अनुसूचित जातियों की अनुसूची में शामिल कराने के लिए जो संघर्ष और कार्य किया उसने उनकी आर्थिक हालत को सुधारा. वे लाखों की संख्या में निम्न मध्यम वर्ग में आ गए.
यह कहना उचित ही है कि एडवोकेट हंसराज भगत मेघों के अग्रणी हीरो हैं. जिनके संघर्ष की बदौलत मेघों को लाभ हुआ जिसे आने वाली पीढ़ियाँ भी महसूस करेंगी.
1947 में भारत में आने के बाद हंसराज भगत दिल्ली के करोल बाग में रहने लगे. वहाँ वे वकील के रूप में कार्य करते रहे. उनके जन्म आदि की सही तिथियाँ ज्ञात नहीं हो सकी हैं. स्टेट असेंबली की एक पुरानी फोटो के अलावा उनकी कोई अपनी या पारिवारिक फोटो नहीं मिली है. हंसराज जी का परिवार संभवतः विदेश में बस गया था.
(उक्त जानकारियाँ सर्वश्री आर.एल. गोत्रा, यशपाल जी, मोहिंदर पाल और डॉ. ध्यान सिंह के सौजन्य से प्राप्त हुई हैं. उनका आभार. एडवोकेट भगत हंसराज जी के बारे में बेसिक जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई है. यदि कोई सज्जन उसकी तथ्यात्मक जानकारी दे सकें तो इस ई-मेल bhagat.bb@gmail.com पर भेज सकते हैं.)
(Unionist Party से 1937 में बनी विधान सभा/परिषद के सदस्यों का ग्रुप फोटो) |
Hans Raj Bhagat, Advocate (as narrated by Sh. R.L. Gottra):-
ADVOCATE HANS RAJ (हंसराज
भगत,
एडवोकेट),
THE REAL (Written by Rattan Gottra, Jalandhar) Advocate Hans Raj,
originally R/o Vill. Dalowali, Dist. Sialkot (Pakistan) is greatly
remembered for fighting against the Aryan culture of economic and
political exploitation, for being instrumental in getting reservation
in politics and services for Meghs under various provisions by the
Government of India, and for getting them allotted the agricultural
land after the Partition of India. The circumstances under which he
accomplished this task are mentioned here. LAND OWNERSHIP RIGHTS: It
may be mentioned that Arya Samaj, Sialkot (Pakistan) had got
registered a 'Charitable Trust' named 'Megh Uddhar Sabha', managed by
Ganga Ram, in the first quarter of twentieth century to promote
education among the 'Dalits', as a part of their strategy to keep
them away from conversion to Sikhism and Islam. It was a time when
all religious organizations namely Islam, Hinduism & Sikhism in
Punjab were to some extent competing with each other in this
connection from demographic view-point to safeguard their respective
future political interests. To float an educated leadership for that
purpose among the Hindu Meghs, they had borne the expenses of
education in law for two persons namely Hans Raj, and Jagdish Mitter
respectively, both of whom completed their LLB degrees in 1935.
Jagdish Mitter unfortunately died shortly after his education. Hans
Raj Advocate after joining his profession in law came into contact
with various political personalities including Mangu Ram Mugowalia
(Dist. Hoshiarpur), an Ambedkarite, who had already started Ad-Dharam
movement in Punjab; and through whom he also came into touch with Dr.
Ambedkar as well. Consequently, the philosophy Ambedkarism turned him
into a much rationalist and a humanist than a traditionalist.
Advocate Hans Raj deeply observed the country's political scenario,
as well as the miserable economic plight of Meghs including those
employed as share-cropper farm laborers under the said 'Megh Uddhar
Sabha'. These farm-laborers had converted the barren land into a very
fertile land that had been got on lease from the British Government
for charitable purpose. The Meghs employed there were quite justified
in expecting 50% of crop as their justifiable share or remuneration,
particularly when land was for charitable purpose. However, they were
paid only one-third of the crop as their share. While observing their
miserable plight, Advocate Hans Raj felt very much pained due to this
economic exploitation of Megh farm-laborers at Arya Nagar, Teh.
Khanewal, Dist. Multan; but, their demands were rejected by the
'Trust'. Consequently, there was also learnt to be some bitter
altercation between 'Trust' authorities and farm laborers.
Consequently, due to this dishonest drama of 'Charity', Advocate Hans
Raj revolted against the Arya Samaj, and won a court case against the
said 'Trust', practically managed by Arya Samaj, who are rather
pompously described by many as great social reformers for Meghs of
Punjab. Sensing their defeat, just before the announcement of court's
verdict, the 'Trust' authorities, to save their honor had verbally
announced that the share-croppers were the owners of land allotted to
them for cultivation! As a result of favorable verdict in this case,
the share cropper Meghs became full fledged land-owners, because
Advocate Hans Raj had wisely represented their case before the court.
RESERVATION: Dr. Ambedkar had laid the foundation for empowerment of
'Dalits' by signing the 'Poona Pact'. Through his advice and
suggestions in the Governing Council of India under British
Government, it was possible to implement the 'reservation system'
derived from the Poona Pact. For this purpose, Dr. Ambedkar was made
member of the Indian Franchise Committee, which was empowered to form
the State Franchise Committees for each state to decide about the
quantum of separate political representation of 'Dalits' in the
legislative bodies based upon the extent of SC/ST population in each
state, as per the provisions contained in Government of India
Act-1935. Advocate Hans Raj worked for preparing of schedules (lists)
of socially and economically deprived castes, tribes and communities.
As per the 'Writings & Speeches' of Dr. BR Ambedkar, a ten member
Punjab State Franchise Committee consisting of Hindu, Muslim,
'Dalits', and Sikh representatives was appointed to investigate and
identify communities or castes/tribes that were both socially and
economically weaker for the purpose of giving them representation in
political structure of India, as well as in the services. Advocate
Hans Raj and K.B. Deen Mohammad (Megh, converted to Islam) were
appointed as members to represent and look after the interests of
'Dalits' of Punjab in their studies on the subject. Among the Hindus,
Chhotu Ram and Pt. Nanak Chand (both Arya Samajists) were also the
members. After their study, nine members of the Committee (including
Hindus and a Sikh) reported that in the then undivided Punjab, it was
impossible to say that there were any 'Dalits' or SC/ST communities
whose civil rights were violated because of their respective
religions. However, they added that there were some classes in the
villages whose economic and social situation was definitely
miserable. They also reported that though there were no 'Dalits'
among the Muslims, yet there were 'Dalits' among Hindus and Sikhs and
their total population at that time was shown 1,30,709 only! The
Meghs and some other communities were not mentioned in their report
and the figures of population were astonishingly shown to be too low.
Thus, the Committee of Punjab in its majority opinion had flatly
denied the existence of any 'Dalit' or 'Untouchables' in Punjab.
Actually, the term 'Dalit' was used was used by Dr. Ambedkar for the
'Untouchables' (Aachhoot), so as not to hurt anybody's feelings.
However, Advocate Hans Raj in his separate (dissenting) independent
report mentioned that the list of 'Dalit' communities was incomplete;
because many communities (including Meghs) were left out during the
study. More or less, similar reports were received from other states
of India, because of the dishonesty demonstrated by the high caste
members including the Arya Samajis. Those very Hindus who never
disputed the existence of population of 'Untouchables' upto 1931-12
Census report started denying their existence! Because, they imagined
that the quantum of Hindu seats might get reduced by relinquishing a
share of it in favor of 'Dalits' in proportion to their population.
KB Deen Mohd. was under the pressure of Islamist fundamentalists, who
believed that all Islamists were equal in the eyes of 'Allah' and
therefore, he was supposed not to report any 'Muslim' as 'Dalit' so
as to demonstrate the superiority of Islam. In reality, the
leadership of Muslim League (like the high-caste Hindus), also felt
that if a section of Muslims were declared as 'Dalits', they would be
demographically at a great disadvantage in any future course of
political action in already Hindu-dominated India. Therefore, he
reported that though there were some economically weaker people, yet
there was no social discrimination among the Muslims. Ultimately, Dr.
Ambedkar accepted the recommendations of Advocate Hans Raj, and Meghs
along-with others like Ad-Dharmis, Ramdassia, Ravidassia, Julaha,
etc. were included in the Scheduled Castes list. Simultaneously, the
Arya Samajists had started propagating among 'Dalits' that in view of
government's attempt to enlist the 'Untouchables' as Scheduled
Castes, if any of the communities among them got registered in that
list, it may result into permanent stigma for them to be called as
such 'Untouchables'. This propaganda was particularly carried on
through the Arya Samaj priests throughout Punjab. A good majority of
these priests included the Megh Purohits who by then had been
educated upto primary or elementary level in the Arya Schools run by
Arya Samaj and had thus been brain-washed. Consequent to this
propaganda, many of the Meghs and Kabir-Panthis even gave out to the
1941 and 1951 census operations authorities that they were Bhagats
i.e. not Meghs. But later on, when they realized the benefits of
reservation, they gradually reverted back to give out the true
information that they belonged to Megh community. This is the very
unique example of how the ignorant people through repitition of an
un-truth over a hundred times or so can be be-fooled by 'Hindutva'
zealots. ALLOTMENT OF LAND TO MEGH MIGRANTS: After the Partition
(1947) of India, Advocate Hans Raj migrated to Delhi, and established
contacts with Rameshwari Nehru (Raina) w/o Brij Lal Nehru, nephew of
Motilal Nehru and cousin Jawaharlal Nehru. Rameshwari at that time
had been doing commendable work for saving, tracing and resettling
displaced persons who had migrated from Pakistan to India. In 1949
she was appointed Adviser to the Ministry of Rehabilitation,
Government of India. Advocate Hans Raj explained to her the miserable
plight of displaced migrant farm-labor Meghs from Pakistan and
requested her to get issued orders for allotment of evacuees land to
them. She agreed for allotment of agricultural land to migrant Meghs
in Dist. Alwar, Rajasthan. Late Advocate Daulat Ram, MA, LLB,
(a Megh with helpful attitude) R/o Jammu-Tawi was the Settlement
Officer, Rehabilitation Deptt., GOI, Stationed at Jalandhar to look
after the cases of re-settlement of migrant refugees in Punjab.
Advocate Hans Raj remained in touch with him for the implementation
of the Government's orders. From among the displaced migrants, two
prominent persons Bhagat Gopi Chand, and Bhagat Buddha Mal (both
educated up-to Under-Matriculation and Primary levels respectively)
were made to remain in touch with Advocate Daulat Ram for paper-work
formalities. This is how the allotment
of land in Alwar was got
accomplished by Advocate Hans Raj, and Advocate Daulat Ram
respectively, without whose initiative and sincere efforts, all of it
could not have been possible. POLITICAL REPRESENTATION: Under the
Government of India Act-1935, the British Government held popular
elections and constitued the state assemblies in 1937. It gave the
provincial assemblies full responsibility for government. Much before
the announcement of elections, Advocate Hans Raj had got married with
a lady belonging to Ad-Dharam community with the object to create an
example of unity among the 'Dalits'. However, when before the
marriage, he had sent invitations to prominent persons including
Meghs and some Arya Samaji friends, most of them not only boycotted
his marriage party, but also expelled him from the 'Biradari',
apparently on the plea that 'Bhagats' (new name acquired by Meghs
from Arya Samaj activist Ganga Ram) stood at a bit higher social
level from the Ad-Dharmis and that gravity of his deviation from the
established social norms was not pardonable. Behind this drama, there
was said to be mischievous hand of Arya Samaj activists, as they
intended to take revenge for his having contacts with Ambedkarites,
as well as for filing a court case to secure the land-ownership
rights from the 'Trust' managed by the Arya Samaj. Consequently,
before the 1937 elections to Punjab State Assembly, while assessing
his mass base, Advocate Hans Raj decided to join the Unionist Party
of India (led by Sikander Hayat Khan) that included both the Hindus
and the Muslims and stood against the Partition of India. He
contested elections on this party's ticket, but was defeated by the
Congress Party candidate Chowdhary Sunder Singh (an Ad-Dharmi), but
was defeated by the latter mainly due to lack of support from his own
community, because Arya Samaj had also fielded Bhagat Gopi Chand
(another Megh) just to erode his mass base and thus to take revenge!
Later on, after December 1945, with the support of Unionist Party of
India and the Ad-Dharm Mandal, Advocate Hans Raj was nominated to the
Legislative Council.
Rattan Gottra
10/09/2014 22:34
02-11-2017
श्री आर एल गोत्रा जी ने ही सबसे पहले एडवोकेट हंसराज भगत जी के बारे में जो बताया था वो मैंने यहाँ दर्ज कर दिया था. जो छुटपुट बातें अन्य से प्राप्त हुई उसे भी साथ ही दर्ज कर दिया. पहला रिकार्ड लुधियाना के श्री सुरजीत सिंह भगत से मिला. उन्होंने तब की पंजाब विधानसभा के सदस्यों की एक फोटो उपलब्ध कराई थी. उन्होंने यह भी बताया कि उनको मिली जानकारी के अनुसार भगत हंसराज जी का बेटा इंडियन एयरलाइंस में था. आज (01-11-2017) को जोधपुर से ताराराम जी ने एक पुस्तक के कुछ पृष्ठों की फोटो प्रतियां भेजी हैं जिनमें तब की पंजाब विधान सभा का कुछ रिकार्ड उपलब्ध है. उससे पता चलता है कि एडवोकेट भगत हंसराज उस विधान सभा के मंत्रीमंडल में पार्लियामेंट्री प्राईवेट सेक्रेटरी रहे थे. नई जानकारी के संदर्भ में आज फिर गोत्रा जी से बात हुई. उन्होंने बताया कि भगत हंसराज भगत का उल्लेख अमेरिका के महान विद्वान मार्क योर्गन्समायर (Mark Juergensmeyer) की पुस्तक ‘रिलीजियस रिबेल्स ऑफ पंजाब’ में भी आया है. कुछ और विवरण ताराराम जी से प्रतीक्षित है.
गज़ट के नीचे बाईं ओर भगत जी के नोटरी के तौर पर नियुक्त होने की बात का उल्लेख है. |
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