द्वितीय विश्व युद्ध
(1939-1945) में पराधीन
भारत में ब्रिटिश भारतीय सेना
में बतौर एक सैनिक के रूप में
बर्मा कैम्पेन में भाग लेकर
राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र
के श्री धर्माजी मेघ 23 अप्रैल
1947 को सेवा निवृत
होकर वापस आये और पाली देवी
से विवाह किया। उनके घर में
चौथी संतान के रूप में श्री
ताराराम जी का जन्म हुआ। धर्माजी
के परिवार के लोग सामंतशाही
और बेगारी के विरुद्ध संघर्षरत
रहे। धर्माजी का शिक्षा के
प्रति बहुत लगाव था। अतः
उन्होंने अपनी संतान को पढाने
का संकल्प लिया और पुत्र ताराराम
को उच्च शिक्षा दिलाई।
श्री ताराराम जी की
स्कूली शिक्षा ग्रामीण क्षेत्र
में हुई। वे बचपन से ही होनहार
और प्रतिभाशाली थे। अपनी कक्षा
में हमेशा अव्वल रहते। सह
शैक्षिक गतिविधियों में भी
आपका योगदान उल्लेखनीय रहा।
विद्यार्थी जीवन में स्काउट
गाइड और एनसीसी के प्रतिभागी
रहे। हाई स्कूल में वे तहसील
स्तर पर प्रथम रहे। उन्हें
जिलाधीश कार्यालय द्वारा
500/ रुपये का नकद
पुरस्कार दिया गया। एक सैनिक
का पुत्र होने के नाते सरकार
से उन्हें सैनिक छात्रवृति
भी मिलती रही। तत्कालीन जोधपुर
विश्वविद्यालय में स्नातक
की पढाई हेतु 1975-76 में
प्रवेश लिया। जहाँ संस्कृत,
दर्शनशास्त्र,
इतिहास, राजनीतिशास्त्र,
समाजशास्त्र और
मनोविज्ञान आदि का अध्ययन
किया। स्नातक प्रथम वर्ष में
ही विश्व विद्यालय में 73%
अंक प्राप्त कर प्रथम
स्थान प्राप्त किया। कुलपति
ने उन्हें होस्टल में आकर बधाई
दी और प्रशस्ति पत्र दिया।
वि. वि. के
इतिहास में किसी भी दलित छात्र
का यह प्रथम कीर्तिमान था।
पढाई के साथ वे छात्र राजनीती
से भी जुड़े रहे और कई आन्दोलनों
में सक्रिय व अग्रणी भूमिका
निभाई। आपातकाल में वी.सी.
की एडवाइजरी कमिटी
के भी सदस्य रहे और विभिन्न
छात्र संगठनों में अहम पदों
पर रहकर साथी छात्रों का मार्ग
दर्शन किया।
फोटो में वि वि के कुलपति से मेरिट सर्टिफिकेट लेते हुए। |
जोधपुर
विश्वविद्यालय जोधपुर (सम्प्रति-
जयनारायण विश्वविद्यालय)
से मनोविज्ञान में
बीए (ऑनर्स)
की उपाधि विश्वविद्यालय
की वरीयता सूची (Merit)
में द्वितीय स्थान
के साथ प्राप्त की। अधिस्नातक
(एम.ए.)
की डिग्री भी उसी
विश्वविद्यालय से प्राप्त
की। वे सदैव प्रथम श्रेणी से
उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थी
रहे। प्रोफ़ेसर एम.
सी. जोशी
के मार्ग निर्देशन में "मानसिक
स्वास्थ्य" पर
पीएचडी हेतु कार्य किया। कुछ
वर्षों तक विश्वविद्यालय में
मनोविज्ञान विभाग में एसिस्टेंट
प्रोफ़ेसर के रूप में अध्यापन
भी किया। एन.सी.इ.आर.टी.
में भी बतौर कांउसलर
चयनित हुए। आप लम्बे समय से
ट्रेड यूनियन आन्दोलन से भी
जुड़े हुए हैं। लेबर लॉज़,
लेबर वेलफेयर और
पर्सनल मेनेजमेंट में डिप्लोमा
प्राप्त ताराराम जी ने विभागीय
कार्यवाहियों में बीस से अधिक
कर्मचारियों का सफल बचाव किया
है। बैकिंग क्षेत्र में अनुसूचित
जाति और जनजाति के कर्मचारियों
का संगठन खड़ा किया।
विश्वविद्यालय में अनुसूचित जाति और जन जाति के विद्यार्थियों के साथ होने वाले गैर बराबरी और भेदभाव पूर्ण रवैये के विरुद्ध संघर्ष किया और कई आन्दोलनों में अग्रणी भूमिका निभाई। अनुसूचित जाति के छात्रों की छात्रवृति वृद्धि हेतु 1977-78 में राजस्थान विधान सभा के घेराव की रणनीति बनाने और अंजाम देने में अग्रणी रहे। राजस्थान में इंजीनियरिंग, मेडिकल और एमबीए आदि में जनसंख्या के अनुपात में छात्रों का प्रवेश नहीं होता था। उस हेतु संघर्ष किया और कुछ मामलों में हाईकोर्ट में वाद दायर कर जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण सुनिश्चित कराया। राजस्थान के सभी विश्वविद्यालयों में आरक्षण लागू करवाने हेतु संघर्ष किया और उसे हाईकोर्ट द्वारा सुनिश्चित करवाया। इसके अलावा छात्र हित और अनुसूचित जाति/जनजाति के कई सामाजिक आंदोलनों में महत्वपूर्ण कार्य किया।
राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में डॉ अंबेडकर जयंती मनाने की शुरुआत 1976 से की। सन 1977 में जोधपुर में बौद्ध धर्म परिवर्तन कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पश्चिमी राजस्थान में डॉ अंबेडकर और बौद्ध धर्म प्रचार में 1976 से लेकर आज तक सनद श्री ताराराम जी जोधपुर में अंबेडकर जयंती और आन्दोलन के एक अग्रणी व्यक्तित्व माने जाते है। राजस्थान के प्रसिद्ध अम्बेडकरी और बौद्ध पुनर्जागरण के अग्रणी श्री एच आर जोधा के संपर्क में आने के बाद पूर्णतः बौद्ध और अम्बेडकरी आन्दोलन से जुड़ गए। सन 1977 में प्रसिद्ध अम्बेडकरी एल आर बाली के व डी आर जाटव आदि के संपर्क में आये। उसी समय अंबेडकर भवन, दिल्ली आना जाना हुआ, जहाँ सोहन लाल शास्त्री, भगवान दास, एच सी जोशी, जगन्नाथ उपाध्याय, स्वरुप चंद और शांति स्वरुप बौद्ध आदि से संपर्क हुआ। जिनसे वे अंबेडकर व बौद्ध आन्दोलन के प्रति और अधिक गंभीर हो गए।
श्री ताराराम जी अपने
विद्यार्थी जीवन से ही कई
सामाजिक सुधार आन्दोलनों की
संस्थाओं से जुड़े रहे। जिसमे
शेडूल्ड कास्ट अपलिफ्ट यूनियन,
भारतीय बौद्ध महासभा,
बौद्ध परिषद्,
अंबेडकर सेवा समिति,
अंबेडकर नवयुवक संघ,
आल इंडिया समता सैनिक
दल, स्टूडेंट फेडरेशन,
प्रगतिशील युवा महासंघ,
विद्याथी-अभिभावक
संघ आदि प्रमुख है। इन विभिन्न
संस्थाओं के विभिन्न दायित्वों
व पदों पर रहते हुए अंबेडकर-विचारधारा
और बौद्ध धर्म का निरंतर प्रचार
किया।
कई दशकों तक जोधपुर
व उसके आस-पास के
क्षेत्रों में डॉ. अंबेडकर
जयंतियों का सफल आयोजन और
सञ्चालन किया। अंबेडकर जन्म
शताब्दी वर्ष में सूर्य नगरी
विचार मंच का गठन कर साल भर
चलने वाली अंबेडकर व्याख्यान
माला का आयोजन किया, जिसमें
अनु.जाति/जनजाति
शिक्षक संघ और भारतीय दलित
साहित्य अकादमी को भी जोड़ा
और अंबेडकर मिशन का प्रचार
किया। अंबेडकर जन्म शताब्दी
समारोह का गठन कर वृहद् स्तर
पर कार्यक्रम आयोजित करवाए।
पाली और जोधपुर में डॉ.
अंबेडकर की प्रथम
मूर्ति लगवाने हेतु आन्दोलन
किया, जिसके प्रतिफल
वहां मूर्तियाँ लग सकी।
विभिन्न संस्थाओं
द्वारा आपको सम्मानित किया
गया। समाज सेवा हेतु राजस्थान
सरकार द्वारा जोधपुर जिले
से, बौद्ध साहित्य
में योगदान हेतु जैन-बौद्ध
विभाग, काशी हिन्दू
विश्व विद्यालय, बनारस
ने तथा जन चेतना और अंबेडकर
विचारधारा के प्रचार- प्रसार
हेतु जय नारायण विश्वविद्यालय,
जोधपुर जन चेतना और
प्रजातान्त्रिक मूल्यों के
संवर्धन हेतु जीवाजी विश्वविद्यालय,
ग्वालियर आदि द्वारा
सम्मनित किया गया। बुद्ध विहार
प्रबंधन समिति द्वारा त्रिरतन
सम्मान, बुद्धा
मिशन ऑफ इंडिया द्वारा करुणा
मैत्री पुरस्कार, जाई
बाई चौधरी ज्ञान पीठ, नागपुर
द्वारा नालंदा भीम रतन
प्रेस्टिजियस अवार्ड,
भारतीय दलित साहित्य
द्वारा अंबेडकर फैलोशिप
अवार्ड, राहुल
सांकृत्यायन अवार्ड तथा अन्य
कई संस्थाओं द्वारा सम्मान,
प्रशस्ति पत्र और
पुरस्कार नवाजे गए।
Tararam |
(Contributed by Vinay Vikram)
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